मैं मास मीडिया का लगभग 20 साल से अध्ययन कर रहा हूं, जिसमें एशिया, यूरोप और अमेरिका का मीडिया शामिल है. मेरे संज्ञान में दुनिया में कहीं भी ऐसा नहीं हुआ, जब पूरे विपक्ष ने मीडिया पर पक्षपात का आरोप लगाते हुए टीवी बहसों में जाना बंद कर दिया हो. क्या आपको लगता है कि भारतीय मीडिया अपने पतन के निचले स्तर पर पहुंच चुका है या इसे अभी और नीचे जाना है?