अगर सदियो से छिने अधिकारों को पाना है तो SC/ST/OBC मूलनिवासियों को इक्कट्ठा होना होगा। नही तो ये "फूट डालो राज करो चलता रहेगा । जागो -जगाओ
पेरियार, ललईसिंह यादव कहते है कि..
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भगवान धूर्त, चालाक और मक्कार लोगो के शैतानी दिमाग का सामाजिक, राजनैतिक और आर्थिक षड्यंत्र है | इसको निम्न प्रकार से समझा जा सकता है-यह एक ब्राह्मण रचित शोषण यंत्र है जिसमें भ्रम के साथ भय पैदा करना मुख्य लक्ष्य रहा है कल्पना लोक में जनता को व्यस्त रखने की हर संभव प्रयास किया गया है और तर्क को आस्था से काटा गया है ताकि किसी भी तरह की संदेह की गुंजाइश न हो
१. भगवान की रचना करके लोगो को भगवान के नाम पर डराया गया जिससे लोग उसकी पूजा-अर्चना और उपासना करने के लिए मजबूर हुए |
२. भगवान् की पूजा अर्चना करने के लिए एक पवित्र स्थान की जरुरत महसूस हुयी जिसके लिए मंदिर निर्माण की आवश्यकता हुयी |
३. मंदिर बनवाने के लिए धन की आवश्यकता हुयी और धन लोगो से श्रद्धा के नाम पर लिया गया और मंदिर निर्माण के साथ साथ भगवान के रचयिताओ का भी भला हुआ |
४. भगवान की रचना के बाद लोगो को तरह तरह से डराया गया जिससे पाखंडो और अन्धविश्वासो को बढ़ावा मिला |
५. पाखंडो और अन्धविश्वासो से डरकर लोग बाग उसके रचयिता की शरण में उनसे बचने के उपाय जानने के लिए जाने शुरू हुए जिनसे उनकी आमदनी शुरू हुयी और आपका पैसा जाने लगा |
६. भगवान के नाम पर पाप और पुण्य का खेल शुरू हुआ और पुण्य कमाने के नाम पर आपका पैसा मंदिरों में जाना शुरू हो गया और उसके रचयिता धनाढय होते गए |
७. भगवान के नाम पर किसी को भी बेवकूफ बनाना सरल था जिससे ये धूर्त लोग अपनी निजी दुश्मनी निकालने के लिए जनता को भड़काकर दुश्मन के खिलाफ इस्तेमाल करने लगे और अपने दुश्मनों का सफाया आसानी से करने लगे |
८. भगवान की रचना के बाद उसको आगे चलाने के लिए आत्मा की रचना की गयी, जिससे मनुष्य धरती पर अपने कष्टों के निवारण के नाम पर ही नहीं बल्कि मृत्यु के बाद होने वाले कष्टों से बचने के लिए भी अपनी जेब ढीली करके भगवान के रचयिताओ का घर भर सके |
९. आत्मा की रचना के बाद स्वर्ग और नरक की रचना की गयी और इनको ऐसी जगह बना दिया गया जहाँ पर मनुष्य की मृत्यु के बाद आत्मा के जीवन भर के कार्यो के आधार पर दंड और पुरस्कार मिलना था |
१०. स्वर्ग को एक ऐसी वैभवशाली जगह बनाया गया जहाँ पर प्रत्येक तरह की विलासितापूर्ण और ऐयाशी की चीजे मौजूद थी | जो चीज इस लोक में त्याज्य थी वो वहां पर भगवान् द्वारा खुद दी जा रही थी जैसे सुरा और सुंदरिया सहित तमाम तरह की ऐयाशिया | अब कोई इन चीजो को क्यों प्राप्त नहीं करना चाहेगा ? स्वर्ग की लालसा में और स्वर्ग प्राप्त करने के लिए अपने जीवन भर की कमाई लुटाने लगे इसके रचयिताओ पर |
११. अब सत्कर्म वालो के लिए स्वर्ग था तो ईश्वर को ना मानने वालो के लिए भी नरक की व्यवस्था जरुरी थी | नरक ऐसी जगह बनायीं गयी जहाँ पर आपको आपके जीवन भर के कर्मो का हिसाब देना था और सजाये ऐसी थी जो क्रूर से क्रूर देश भी अपराधियों को नहीं देता है | जैसे आत्मा को आरे से टुकड़े टुकड़े करना, आत्मा को खौलते हुए तेल में पकाना, लोहे की कीलो पर लिटाना | अब इतनी यातनादायक जगह पर कौन जाना चाहेगा तो शुरू हो गयी अब नरक जाने से बचने के उपायों के नाम पर कमाई |
१२. कुछ ऐसे लोग जो जीवन भर इनके चंगुल में नहीं फंस सके उनको भी फांसने के लिए इन्होने आखिर तक हार नहीं मानी ऐसे लोगो को विशेष छूट दी गयी | इन लोगो से कहा गया आप अपने जीवन के अंतिम क्षणों में दान पूण्य कर दीजिये आपको स्वर्ग की प्राप्ति होगी |
१३. स्वर्ग और नरक की स्थापना के बाद इनकी व्यवस्था को सँभालने के लिए इंद्र और यमराज तथा उनके सहयोगियों की रचना की गयी | अब इंद्र और यमराज को प्रसन्न करने के नाम पर कमाई शुरू |
१४. मृत्यु के बाद आत्मा की शांति के लिए चिता जलने से पहले ही दान दक्षिणा की व्यवस्था की गयी वर्ना मृतक की आत्मा को कभी शांति नहीं मिलेगी |
१५. चिता को अग्नि देने के बाद पुरोहितो पंडितो को खुश करने के लिए ब्रह्मभोज जैसी अनेक प्रथाए शुरू की गयीं जिससे भगवान के रचयिताओ का धंधा खूब जोर शोर से चलने लगा |