कबीर दास एक बार स्नान करने गये वहीं पर कुछ ब्राह्मण अपने पूर्वजों को पानी दे रहे थे,
तब कबीर ने भी स्नान किया और पानी देने लगे,
इस पर सभी ब्राह्मण हँसने लगे और कहने लगे कि
"कबीर तू तो इन सब में विश्वास नहीं करता , हमारा विरोध करता है,"
और आज वही कार्य तुम भी कर रहे हो ?
जो हम कर रहे हैं ।
कबीर ने कहा," नहीं ,मैं तो अपने बगीचे में पानी दे रहा हूँ , "
कबीर की इस बात पर ब्राह्मण लोग हँसने लगे और कबीर से कहने लगे कि "कबीर जी तुम बौरा गये हो , तुम पानी इस तलाब में दे रहे हो तो बगीचे में कैसे पहुँच जायेगा ?
कबीर ने कहा जब तुम्हारा दिया पानी इस लोक से पितरलोक चला जा सकता है तुम्हारे पूर्वजों के पास ...
...तो मेरा बगीचा तो इसी लोक में है तो वहाँ कैसे नहीं जा सकता है ।
सभी ब्राह्मणों का सिर नीचे हो गया ।
देना है पानी,भोजन,कपडा़ तो अपने जीवित माँ बाप को दो... उनके जाने के बाद तुम जो भी देना चाहोगे... वो उन तक तो नहीं...बल्कि पाखंडी ब्राह्मणों के घरों में पहुँचेगा ।
बुद्ध से बुद्धि मिली ,
कबीर से मिला ज्ञान ,
बाबा साहब की बदौलत,
मिला हमें सविधान ।।