मात्र फर्श पर सोने से प्रेग्नेंट हो जाती है महिलाएं प्रेगनेंट हो जाती है ऐसा बिल्कुल भी नहीं है आप इस अंधविश्वास में मत पड़िए इन पंडितों ने धर्म की आड़ में हवस की प्यास बुजाने के लिए अपने लिए अच्छा रास्ता चुना है यह पंडित रात में धर्म की आड़ में महिलाओं का शोषण करते है।
यकिन नहीं हो तो देवदासी प्रथा पढ लिजिए जिसमें दस बारह साल की लड़की शादी भगवान या मंदिर के साथ करते है फिर वो लड़की जिवित इंसान के साथ शादी नहीं कर सकती है
रात को मंदिर में ही रात में पंडित और पुरोहित उस लड़की के साथ बलात्कार करते है तथा लड़की को गर्भनिरोधक गोलियां खिलाकर वर्षों तक उसका शोषण करते है जब उनसे मन भर जाता है तो वैश्यालयों में बेच देते है बलात्कार को जन्म देने वाला यह विदेशी यूरेशियन ब्राह्मण है इनकी यही संस्कृति रही है।
वैदिक संस्कृति अथार्त वैदिक समाज में मादक द्रव्यों व नशों का प्रयोग,व्यसन, जुआ, जादू-टोना, अनैतिकताएं, अन्धविश्वास और मूर्खतापूर्ण रूढ़ियाँ व्यापक थीं. बौद्धकाल पूर्व के आर्यों में लैंगिक (sexual ) अथवा विवाह-संबंधों के प्रति कोई प्रतिबन्ध नहीं था.
वैदिक समाज में पिता-पुत्री और दादा-पोती में मैथुन समंध उचित माने जाते थे. वसिष्ठ ने अपनी पुत्री शतरूपा से विवाह रचाया, मनु ने अपनी पुत्री इला से विवाह किया, जहानु ने अपनी बेटी जहान्वी से शादी की, सूर्य ने अपनी बेटी उषा से ब्याह किया ।
धहप्रचेतनी और उस के पुत्र सोम दोनों ने सोम की बेटी मारिषा से संभोग किया. दक्ष ने अपनी बेटी अपने ही पिता ब्रह्मा को विवाह में दी और इन वैवाहिक-संबंधों से नारद का जन्म हुआ. दोहित्र ने अपनी २७ पुत्रियों को अपने ही पिता सोम को संतान-उत्पत्ति के लिए सौंपा.
विदेशी आर्य खुले आम सब के सामने मैथुन करते थे. ऋषि कुछ धार्मिक रीतियाँ करते थे जिन्हें वामदेव-विरत कहा जाता था. ये रीतियाँ यज्ञ-भूमि पर ही की जाती थी. यदि कोई स्त्री पुरोहित के सामने सम्भोग करने की इच्छा प्रकट करती थी तो वह उसके साथ वहीँ सब के सामने मैथुन करता था. उदाहरांत: पराशर ने सत्यवती और धिर्घत्मा के साथ (यज्ञ-स्थल ही पर) सम्भोग किया.”
आर्यों में योनि नामक एक प्रथा प्रचलित थी.योनि शब्द का जैसा अर्थ अब लगाया जाता है वैसा शुरू में नहीं था शब्द योनि का मूलत: अर्थ है – घर. अयोनी का अर्थ है ऐसा गर्भ जो घर के बाहर ठहराया गया हो. अयोनी-प्रथा में कोई बुराई नहीं मानी जाती थी. सीता और द्रोपदी दोनों का जन्म अयोनि (यानी घर से बाहर) हुआ था.”
विदेशी आर्यों में औरत को भाड़े (किराये) पर दिया जाता था. माधवी की कहानी इस का एक स्पष्ट प्रमाण है. राजा ययाति ने अपनी बेटी माधवी को अपने गुरु गालव को भेंट में दे दिया. गालव ने माधवी को तीन राजाओं को भाड़े पर दिया. इस के पश्चात गालव ने माधवी का विवाह विश्वामित्र से कर दिया वह विश्वामित्र के पास उस समय तक रही जब तक उस ने एक पुत्र को जन्म नहीं दिया, यह सब कुछ होने के बाद गालव ने माधवी को वापिस लेकर उसे उसके पिता को लौटा किया.”
क्योंकि अकबर की भांडोती करने वाला ब्राह्मण था हरम के लिए हिन्दू महिलाओं को भेजते थे। उसी समय से भारत में वैश्यालय चालू हुए थे उससे पहले भारत में कहिं भी वैश्यालय नहीं था।
बच्चा पैदा करने के लिए क्या आवश्यक है..??
पुरुष का वीर्य और औरत का गर्भ !!!
लेकिन रुकिए ...सिर्फ गर्भ ??? नहीं... नहीं...!!!
एक ऐसा शरीर जो इस क्रिया के लिए तैयार हो।
जबकि वीर्य के लिए 13 साल और 70 साल का
वीर्य भी चलेगा।
लेकिन गर्भाशय का मजबूत होना अति आवश्यक है,
इसलिए सेहत भी अच्छी होनी चाहिए।
एक ऐसी स्त्री का गर्भाशय
जिसको बाकायदा हर महीने समयानुसार
माहवारी (Period) आती हो।
जी हाँ !
वही माहवारी जिसको सभी स्त्रियाँ
हर महीने बर्दाश्त करती हैं।
बर्दाश्त इसलिए क्योंकि
महावारी (Period) उनका Choice नहीं है।
यह कुदरत के द्वारा दिया गया एक नियम है।
वही महावारी जिसमें शरीर पूरा अकड़ जाता है,
कमर लगता है टूट गयी हो,
पैरों की पिण्डलियाँ फटने लगती हैं,
लगता है पेड़ू में किसी ने पत्थर ठूँस दिये हों,
दर्द की हिलोरें सिहरन पैदा करती हैं।
ऊपर से लोगों की घटिया मानसिकता की वजह से
इसको छुपा छुपा के रखना अपने आप में
किसी जँग से कम नहीं।
बच्चे को जन्म देते समय
असहनीय दर्द को बर्दाश्त करने के लिए
मानसिक और शारीरिक दोनो रूप से तैयार हों।
बीस हड्डियाँ एक साथ टूटने जैसा दर्द
सहन करने की क्षमता से परिपूर्ण हों।
गर्भधारण करने के बाद शुरू के 3 से 4 महीने
जबरदस्त शारीरिक और हार्मोनल बदलाव के चलते
उल्टियाँ, थकान, अवसाद के लिए
मानसिक रूप से तैयार हों।
5वें से 9वें महीने तक अपने बढ़े हुए पेट और
शरीर के साथ सभी काम यथावत करने की शक्ति हो।
गर्भधारण के बाद कुछ
विशेष परिस्थितियों में तरह तरह के
हर दूसरे तीसरे दिन इंजेक्शन लगवानें की
हिम्मत रखती हों।
(जो कभी एक इंजेक्शन लगने पर भी
घर को अपने सिर पर उठा लेती थी।)
प्रसव पीड़ा को दो-चार, छः घंटे के अलावा,
दो दिन, तीन दिन तक बर्दाश्त कर सकने की क्षमता हो। और अगर फिर भी बच्चे का आगमन ना हो तो
गर्भ को चीर कर बच्चे को बाहर निकलवाने की
हिम्मत रखती हों।
अपने खूबसूरत शरीर में Stretch Marks और
Operation का निशान ताउम्र अपने साथ ढोने को तैयार हों। कभी कभी प्रसव के बाद दूध कम उतरने या ना उतरने की दशा में तरह-तरह के काढ़े और दवाई पीने का साहस
रखती हों।
जो अपनी नीन्द को दाँव पर लगा कर
दिन और रात में कोई फर्क ना करती हो।
3 साल तक सिर्फ बच्चे के लिए ही जीने की शर्त पर गर्भधारण के लिए राजी होती हैं।
एक गर्भ में आने के बाद
एक स्त्री की यही मनोदशा होती है