प्रकृति सृजन करती है तो उसे विनाश करना भी आता है.
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हमारी दुनिया जबसे बनी है लाखों बार तबाह हुई है हजारों बार बर्बाद हुई है और सैंकड़ों बार नष्ट हुई है धरती की इस विनाशलीला के सबूत आज भी धरती पर मौजूद है लेकिन ये भी सत्य है कि हर विध्वंश के बाद धरती पर नया सृजन हुआ है धरती हर विनाश के बाद बदली है और इस बदलाव ने हर बार सृजन का नया अध्याय भी लिखा है.
धरती पर कभी डाइनासोरों का एकछत्र राज हुआ करता था उस समय पृथ्वी पर डाइनासोर की हजारों प्रजातियां थी जिनके बीच शिकार और शिकारी का खेल जारी था.
एक तरफ था धरती का एकमात्र विशाल महाद्वीप पैंजिया और दूसरी ओर था विशाल समुद्र. इस पैंजिया लैंड में रहने वाले जीवों की हजारों प्रजातियों में 90 प्रतिशत जीव डाइनासोर की प्रजाति के ही थे जिनमें कुछ शाकाहारी थे कुछ उड़ने वाली प्रजातियां थी और कुछ मांसाहारी डाइनासोर थे जो उस समय भोजन श्रृंखला में सबसे ऊपर थे !
धरती पर 80 करोड़ वर्षों तक हुकूमत करने वाले इन विशाल जानवरों का पतन होने के लिए बस एक क्षण ही काफी था ये वो पल था जब धरती से विशाल धूमकेतु टकराया और देखते ही देखते सब खत्म.
आज से 6 करोड़ साल पहले हुई उस भयानक विनाशलीला में डाइनासोर के साथ साथ पृथ्वी का भी विनाश हुआ पर्यावरण बर्बाद हो गया जंगल खत्म हो गये नदियां खत्म हो गईं. धूमकेतु के टकराने के बाद धरती के 90 फीसदी बड़े जीव समाप्त हो गए जो छोटे जीव बचे उन्होंने बदली हुई विकट परिस्थितियों का जैसे तैसे सामना किया और विकास की विभिन्न परिस्थियों से गुजरते हुए हजारों नई प्रजातियों के रूप में विकसित हुए.
6 करोड़ साल पहले बर्बाद हुई धरती ने नया सृजन किया और अगले दो करोड़ वर्षों में जीवों की लाखों नई प्रजातियां धरती पर विचरने लगीं पैंजिया टूटा और गोंडवाना बना.
इन लाखों नईप्रजातियों में से एक मानव भी था जो आज के समय पूरी दुनिया पर एकक्षत्र राज कर रहा है.
डाइनासोरों के पतन के बाद लगभग 6 करोड़ वर्षों के विकास ने इंसान को आज इस मकाम तक पहुंचाया है.
इन 6 करोड़ वर्षों में साढ़े पांच करोड़ वर्ष के दौरान तो इंसान वैसा ही था जैसा अन्य दूसरे स्तन पाई जीव थे भोजन सुरक्षा और प्रजनन की जद्दोजहद में जंगलों में भटकता एक जीव जिसके पास न भाषा थी न समूह था और न ही भविष्य के सपने थे उसे तो बस जीना था और जीने के लिए उसे खाने की तलाश करनी थी दूसरे जंगली जानवरों से बचाव के लिए दर दर भटकना था और अपना dna आगे बढ़ाने के लिए प्रजनन करता था.
इस समय तक पूरी दुनिया मे इंसानो की कुल आबादी एक लाख से ज्यादा नही थी.
50 लाख वर्षों के इतिहास में ही इंसान ने वो सब कुछ हासिल किया है जिससे आज हम इंसान बने हैं !
आज से पचास लाख साल पहले इंसानों ने पत्थर से औजार बनाना सीखा
40 लाख साल पहले इंसान ने गुफाओं में शुरुआती सभ्यताओं को पोसा.30 लाख साल पहले संवाद सीखा जिससे भाषाएँ बनी 20 लाख साल पहले मनुष्य ने जानवर पालना शुरू किया 10 लाख साल पहले आग का इस्तेमाल सीखा और 1 लाख साल पहले पहिये की खोज ने शुरुआती सभ्यताओं को गति प्रदान की. 50 हजार साल पहले इंसान ने गुफाओं को छोड़ा 20 हजार साल पहले खेती की शुरुआत की॰ इस दौरान इंसानों की कुल आबादी 10 लाख तक पहुंच चुकी थी.
खेती की वजह से इंसानों का शिकार के लिए भटकना बन्द हो गया जिससे गांव बने छोटी बड़ी सभ्यताएं इसी दौर में विकसित हुईं इसी दौरान इंसानों के छोटे छोटे कबीले बने. और इसी दौरान विभिन्न धर्मों और मान्यताओं की नींव पड़ी और इंसानों को ईश्वर की जरूरत पड़ने लगी.
10 हजार साल पहले ये छोटे छोटे कबीले बड़े बड़े साम्राज्य में बदल गए.
5 हजार साल पहले तक पूरी दुनिया मे इंसानों की बड़ी बड़ी सभ्यताएं स्थापित हो चुकी थी फिर भी पूरी दुनिया के सभी इंसानों की कुल आबादी पचास लाख से ज्यादा नही थी.
इंसानों के 6 करोड़ वर्षों के इतिहास में यही 5 हजार साल सबसे महत्वपूर्ण साबित हुए इस दौरान इंसान ने भाषा को लिपि में बदलना सीखा अलग अलग सभ्यताओं में व्यापारिक संबंध कायम हुए.
करीब 4 हजार वर्ष पहले तक इंसानों ने नगरों को बनाना और बसाना शुरू कर दिया था 3 हजार वर्ष पहले तक इंसान दुनिया के लगभग सभी भूभाग तक पहुंच चुका था इसी दौर में उसने धातु की खोज की जिससे खेती और युद्ध मे क्रांतिकारी बदलाव आए.
इसी दौर में धर्म एक महत्वपूर्ण हिस्सा बन कर उभरा और दुनिया की कुल आबादी एक करोड़ तक पहुँच गई॰
करीब दो हजार वर्ष पहले तक दुनिया बदल चुकी थी धर्म दुनिया का सबसे महत्वपूर्ण हिस्सा बन चुका था इससे विभिन्न संस्कृतियों की मान्यताये जुड़ चुकी थी अब दुनिया मे सैंकड़ों धर्म थे हजारों मान्यताएं थी जो लाखों प्रकार के कर्मकांडों पर आधारित थी.
इसी दौर में जड़ हो चुकी पुरानी मान्यताओं का विरोध भी शुरू हुआ॰ और इस विरोध से कई नए धर्म भी आस्तित्व मे आए॰
इस दौरान धर्म के नाम पर कई साम्राज्य बने और बिगड़े कई पुरानी मान्यताओं की जमीन पर नए धर्मों के बीज अंकुरित हुए इस दौरान इंसानों की कुल आबादी 5 करोड़ तक पहुंच चुकी थी.
1000 साल पहले की दुनिया एक दम अलग थी अब धर्मों की कहानी में एक नया अध्याय जुड़ चुका था जिसने अमेरिका ऑस्ट्रेलिया और न्यूजीलैंड को छोड़ कर लगभग पूरी दुनिया को प्रभावित किया इस समय तक पूरी दुनिया की आबादी 10 करोड़ तक पहुंच चुकी थी॰
लगभग पाँच सौ साल पहले की दुनिया पहले से अलग थी कई पुराने साम्राज्य खत्म हुए और इन साम्राज्यों की नींव पर नए साम्रज्य खड़े हुए.
अगले 500 वर्षों में दुनिया तेजी से बदली गोला बारूद तोप और बंदूकों ने दुनिया का नक्शा बदल दिया. बारूद के इस्तेमाल से युद्ध की बड़ी बड़ी त्रासद घटनाएँ घटित हुई बहुत से लोग युद्ध और बीमारियों का शिकार हुए इस दौरान दुनिया की कुल आबादी चालीस करोड़ के आंकड़े को पार कर चुकी थी.
हजारो वर्षों से खोई हुई इंसानी सभ्यताओं का मिलन इसी दौर में हुआ सदियों से स्थापित धर्म की सत्ता को चुनौती इसी दौर में मिली आधुनिक विज्ञान के इस काल में इंसान ने रेल से लेकर हवाईजहाज तक का निर्माण कर डाला छपाई की तकनीक से लेकर मोटरकार टेलीफोन और बिजली का आविष्कार इसी दौर में हुआ जिससे इंसान के जीने का ढंग पूरी तरह बदल गया संस्कृतियों का मिलाप हुआ सभ्यताओं के गठजोड़ बने खेती का स्वरूप बदला.ज्ञान के द्वार खुले इंसान ने बड़ी बड़ी खोजे इसी दौर में की.
1820 तक दुनिया की आबादी सौ करोड़ तक पहुंच चुकी थी यानी दुनिया की आबादी को एक अरब का आंकड़ा छूने में एक लाख से ज्यादा का वक्त लगा जो केवल 100 सालों में दुगनी होकर 1920 तक 2 अरब हो चुकी थी और इसके केवल 50 वर्षों के बाद यानी 1970 तक इंसानों की आबादी दो अरब से बढ़कर 4 अरब तक पहुंच चुकी थी और आज दुनिया की आबादी लगभग 8 अरब तक पहुंच चुकी है.
कहा जा सकता है कि प्रकृति ने इंसान को यहां तक पहुंचने का भरपूर मौका दिया लेकिन आज का इंसान प्रकृति के लिए ही सबसे घातक साबित हो रहा है.
नदी पहाड़ जंगल और दूसरे जीव तेजी से कम हो रहे हैं इसके लिए पूरी तरह से इंसान जिम्मेदार है जिसकी महत्वाकांक्षाओं ने प्रकृति में भारी असंतुलन पैदा कर दिया है पिछले 100 वर्षों में ही पृथ्वी के आधे जंगल खत्म हो चुके हैं और इन्ही सौ वर्षों के दौरान इंसान चार गुना बढ़ गया और दूसरी प्रजातियां आधी कम हो गईं इंसानों की वजह से बहुत से जीव जंतु विलुप्त हो चुके हैं और बहुत से विलुप्त होने के कगार पर हैं इंसानों द्वारा प्रकृति का ये भारी विनाश लगातार बहुत तेजी से हो रहा है इसी वजह से धरती का तापमान तेजी से बढ़ रहा है ग्लेसियर पिघल रहे हैं समुद्र का स्तर बढ़ रहा है.
ये सारी विकट परिस्थितियां सिर्फ और सिर्फ इंसानों की वजह से पैदा हुई हैं इंसानों की बेतहाशा बढ़ती जनसंख्या ही प्रकृति के इस भारी असंतुलन का कारण है हालांकि दुनिया भर के देशों में इस विकट समस्या के प्रति जागरूकता भी पैदा होने लगी है इसलिए चीन जापान ऑस्ट्रेलिया जर्मनी फ्रांस ब्रिटेन और न्यूज़ीलैंड समेत दुनिया भर के देशों ने पिछले बीस वर्षों में जनसंख्या नियंत्रण पर ठोस कदम उठाया है जबकी ये सभी देश क्षेत्रफल के मामले में काफी बड़े हैं.
ऑस्ट्रेलिया जो खुद में एक देश के साथ एक महाद्वीप भी है जिसका क्षेत्रफल भारत से तीन गुना ज्यादा है उसकी कुल आबादी ढाई करोड़ से कम है इस पूरे महाद्वीप पर जितने लोग रहते है उतने भारत की राजधानी दिल्ली में ही ठुसे हुए हैं. साथ ही इतने लोग भारत में एक साल में पैदा हो जाते हैं॰
अमेरिका जो क्षेत्रफल में भारत से छ गुना बड़ा है आबादी के मामले में भारत से चार गुना कम है चीन जो आबादी में लगभग हमारे बराबर है क्षेत्रफल के मामले में हमसे तीन गुना बड़ा है.
पूरे रशिया महाद्वीप की आबादी छोटे से बांग्लादेश से कम है और भारत के up की कुल आबादी रूस से ज्यादा है.
पाकिस्तान के क्षेत्रफल से चार गुना ज्यादा बड़ा है जर्मनी और आबादी के हिसाब से जर्मनी पाकिस्तान से आधा भी नही है.
भारत पाकिस्तान और बांग्लादेश इन तीन देशों की कुल आबादी अगले बीस वर्षों में 200 करोड़ तक पहुंच जाएगी.
जनसंख्या की बेतहाशा वृद्धि से इन देशों का हाल अगले 50 वर्षों में बहुत ही भयंकर होने वाला है धरती के बढ़ते तापमान के कारण इस पूरे भारतीय उपमहाद्वीप की आधी से ज्यादा नदियां पूरी तरह सूख जाएंगी खेती की जमीन आधी रह जाएंगी जिसे भयंकर भुखमरी का माहौल पैदा हो जाएगा वैसे भुखमरी का माहौल तो आज भी है लेकिन तब इन तीनों देशों की एक बड़ी भुखमरी का शिकार होगी.
पिछले तीन महिने में भारत के केवल एक राज्य में 650 किसानों ने आत्महत्या की है सोचिये तब क्या हाल होगा ?
अभी हाल में आई एक रिपोर्ट के अनुसार बेहद गर्मी और उमस के कारण अगले 83 सालों में जीने लायक नही रहेंगे भारत बांग्लादेश और पाकिस्तान
द इंडिपेंडेंट
क्लाइमेट चेंज के कारण अगले कुछ दशकों में दक्षिण एशिया का इलाका लोगों और जीवों के रहने लायक नहीं रहेगा। वैज्ञानिकों का अनुमान है कि जलवायु परिवर्तन के कारण भारत और पाकिस्तान सहित दक्षिण एशियाई देशों में इतनी गर्म हवाएं चलेंगी कि यहां जी पाना नामुमकिन हो जाएगा।
जब वेट-बल्ब टेंपरेचर 35 डिग्री सेल्सियस पर पहुंच जाता है, तो इंसानी शरीर गर्मी के मुताबिक खुद को अनुकूलित नहीं कर पाता। जीवों के शरीर में स्वाभाविक तौर पर अनुकूलन की क्षमता होती है। 35 डिग्री सेल्सियस वेट-बल्ब तापमान होने पर इंसानों का शरीर इतनी गर्मी से खुद को बचाने के लिए ठंडा नहीं हो पाता। इस स्थिति मे कुछ ही घंटों में इंसान दम तोड़ सकता है। शोधकर्ताओं का कहना है कि अगले पचास वर्षो मे भारत की 70 फीसद से ज्यादा की आबादी 32 डिग्री सेल्सियस वेट-बल्ब तापमान को झेलने पर मजबूर हो जाएगी।
अभी के जलवायु की बात करें, तो धरती का वेट-बल्ब तापमान 31 डिग्री सेल्सियस को पार जा चुका है। 2015 में ईरान की खाड़ी के इलाके में यह करीब-करीब 35 डिग्री सेल्सियस की सीमा तक पहुंच गया था। इसके कारण पाकिस्तान और भारत में लगभग 3,5000 लोगों की मौत हुई थी। नए शोध के नतीजों से पता चलता है कि अगर कार्बन उत्सर्जन के साथ साथ जनसंख्या वृद्धि पर जल्द कंट्रोल नही किया गया तो जिंदा रहने की हमारी क्षमता एकदम आखिरी कगार पर पहुंच जाएगी। कृषि उत्पादन में कमी के कारण हमारी स्थितियां और गंभीर हो जाएंगी। ऐसा नहीं कि केवल गर्मी के कारण ही लोग मरेंगे। फसल कम होने के कारण लगभग हर एक इंसान को इन भयावह और असहनीय स्थितियों का सामना करना पड़ेगा.
ऐसी विकट परिस्थिति में सबसे सबसे ज्यादा मारा जाएगा वही गरीब आदमी जिसके हाथ मे आज धर्म का झुनझुना थमा दिया गया है क्योंकि अमीर और सक्षम लोग तो पहले ही देश छोड़ चुके होंगे.
अमीरों को भविष्य में होने वाले उस विनाश का आभाष अभी से है तभी तो हर साल करीब साठ हजार करोड़पति भारत पाकिस्तान और बांग्लादेश को छोड़ कर विदेश में सेटल हो रहे हैं.
लेकिन आज इस भारतीय उपमहाद्वीप पर रहने वाली आबादी को भविष्य की कोई चिंता नही.
क्योंकि भारत पाकिस्तान और बांग्लादेश की कुल आबादी के मात्र 10 प्रतिशत लोग इस पूरे उपमहाद्वीप के 90 प्रतिशत संसाधनों के मालिक हैं और बाकी बचे 90 प्रतिशत लोग 10 प्रतिशत संसाधनों पर जैसे तैसे गुजारा करने को मजबूर हैं.
10 प्रतिशत लोग संसाधनों के साथ साथ धर्म राजनीति और व्यवस्था के मालिक भी बन बैठे हैं.
और ये सब संभव हुआ है अशिक्षित जनता के दिमाग मे झूठ और पाखंड को धर्म के रूप में स्थापित करने से.
ऐसी भयावह व्यवस्था को बनाने में हजारों साल लगे हैं जिसका परिणाम घोर गरीबी अराजकता भय भूख और भ्रष्टाचार के रूप में हमारे सामने है.
भारत पाकिस्तान और बांग्लादेश की पूरी आबादी घोर धार्मिक जहालत के दलदल में फंसी हुई है जिसे यकीन है उस काल्पनिक ईश्वर पर जो इंसान के करोड़ों वर्षों के इतिहास में कही नही था वो तब भी नही था जब खानाबदोश इंसान खूंखार जानवरों का शिकार होकर मरता था वो तब भी नही था जब हिमयुग के दौरान इंसान ठंड से मर रहा था वो तब भी नही था जब 74 हजार वर्ष पूर्व यूरोप का सबसे बडा ज्वालामुखी फटा था जिससे अगले सैंकड़ों वर्षों तक इंसान को भटकना पड़ा था.
मानवता के इतिहास में सैंकड़ों प्राकृतिक आपदाएं आईं हजारों बार भूकंप आये और लाखों युद्ध हुए लोग मरे बेघर हुए लेकिन कही कोई ईश्वर किसी को बचाने नही आया और न ही भविष्य में कभी कोई आएगा अपनी धरती को हमे खुद ही बचाना होगा इसके लिए कम समय मे बड़े उपाय ढ़ंढने होंगे धर्म जाती सम्प्रदाय ईश्वर अल्लाह से ऊपर उठकर कुछ ठोस कदम उठाने होंगे सबसे पहले जनसंख्या पर लगाम कसनी होगी जंगल को बचाना होगा नदियों को बचाना होगा पर्यावरण को बचाना होगा ज्यादा से ज्यादा पेड़ लगाने होंगे ये सब करने के लिए हमारे पास बहुत कम समय बचा है अगर हमने ऐसा नही किया तो आने वाले वक़्त में भारतीय उपमहाद्वीप का ये पूरा धार्मिक इलाका जो आज राम मे मस्त और अल्लाह मे व्यस्त है त्राहि त्राहि करेगा और ये पूरा क्षेत्र बंजर रेगिस्तान मे तब्दील हो जायेगा॰ तब इंसान तो नष्ट होगा ही साथ ही उसके द्वारा बनाए गए सभी धर्म सभ्यतायेँ मंदिर मस्जिद और ईश्वर अल्लाह इन सब का वजूद भी सदा के लिये मिट जाएगा. क्यूंकी प्रकृती सृजन करती है तो उसे विनाश करना भी आता है