इतिहास के पन्नो से
जानिए आज के अयोध्या का सच..
सातवीं शताब्दी में चीन से भारत आये प्रसिद्द चीनी यात्री ह्वेनसांग के अनुसार साकेत (आज की अयोध्या )में करीब 3000 से भी अधिक बौद्ध भिक्षु थे जिनके लिए और 100 से भी अधिक बौद्ध विहार थे,अयोध्या में ही महान सम्राट अशोक द्वारा बनवाये दो विशाल बुद्ध विहार स्थित थे।
जिनकी ऊंचाई करीब 200 फीट थी जिनका नाम #बावरी_विहार था,तत्कालीन (साकेत)अयोध्या पर तथागत बुद्ध के अनुयायी प्रसेनजीत का शासन था,राजा प्रसेनजीत ने ही उस समय के प्रसिद्द बौद्ध भिक्षु बावरी के लिए ही यह बौद्ध विहार बनवाया था।
इसी वर्तमान विवादित ढाँचे की जब पुरातत्व विभाग द्वारा खुदाई कराई गई तो वहां सारे अवशेष बुद्ध कालीन ही मिले,पाली भाषा में सुत्त लिखे अनेक पत्थर खुदाई में मिले ,जिसे देखकर दावेदारों में हड़कंप मच गया तथा रिपोर्ट और अवशेषों को वही का वही दबा दिया गया।
खुदाई की रिपोर्ट और सामान का जिक्र करना ही बन्द कर दिया गया, और इसी धूर्तता में एक प्राचीन बौद्ध स्थल को हमेसा के लिए दफ़न करने का सफल प्रयास किया गया।
तत्कालीन अनेकों हुए साधु संतों तथा लेखकों ने कहीं भी राजा राम या उनकी जन्म स्थली होने का जिक्र नही किया है फिर यह अचानक बीच में राम मंदिर किधर से कूद पड़ा,
दरअसल भारत के बौद्ध कालीन इतिहास को इसी तरह दबाने का लगातार प्रयास जारी है,कुछ इसी तरह मथुरा के मंदिर की खुदाई में भी सिर्फ बुद्ध की मूर्तियां और शिलालेख ही प्राप्त हुए थे जिसे आज ब्राह्मणो ने कृष्ण मंदिर बना दिया है।
पंढरपुर,और तिरुपति आज भी बौद्धिक तीर्थ स्थल है जिनका खुलकर ब्राह्मणीकरण किया गया,भारत का प्रसिद्द बौद्ध तीर्थ स्थल गया जिसे पूरी तरह मिटटी में मिलाने में कोई कोर कसर नही छोड़ी गयी पर फिर भी जब विदेशियों ने इसे खोज लिया जिसपर भी ब्राम्हणों ने पूरी तरह कुंडली मारकर बैठने में कोई देर नही की.
पांचवी शताब्दी में प्रसिद्द चीनी यात्री फाह्यान ने भी साकेत को बौद्धों का एक प्रसिद्द तीर्थ स्थल तथा राजधानी बताया है,("ए रिकार्ड ऑफ बुद्धिस्ट किंगडम ऑक्सफोर्ड-1886,पृष्ठ 54-55"
.में इसका जिक्र आज भी दर्ज है.
सोलहवीं शताब्दी के अंत तक यहाँ कभी कोई राम मंदिर होने की बात भी कभी कहीं नहीं सुनाई दी और न ही रामजन्म भूमि,कहते हैं दशरथी राम महाभारत युद्ध से करीब 65 पीढ़ियों पूर्व पैदा हुए थे,जबकि महाभारत युद्ध 3000 साल ईसा पूर्व हुआ था पर रामजन्मभूमि आज खोजी जा रही है.जिसका प्राचीन इतिहास में कहीं कोई जिक्र नहीं है.
आधुनिक युग में भी जहाँ विमानों और सर्जरी का शोध,पुष्पक विमान,और गणेश के हाथी के सिर की सर्जरी अपने पुराणों में खोजते हैं और दावा करते हैं और दावा करते हैं कि पाश्चात्य लोगों ने विज्ञान हमारे ग्रंथो से लिया है,जोकि पूर्णतया बचकाना और मूर्खतापूर्ण तथा हास्यास्पद है.
महापंडित राहुल सांकृत्यायन अपनी पुस्तक--"तुम्हारी क्षय "में पृष्ठ 30 में लिखते हैं कि आधुनिक अयोध्या व्यभिचार का एक अड्डा है,वहां सदाचार के संबंध में कैसे कैसे बीभत्स काण्ड होते हैं,यह स्थान स्वाभाविक ही नहीं बल्कि अस्वाभाविक व्यभिचार के अड्डे हैं,
यहाँ के साधु संत जघन्य कामुकता के साक्षात अवतार हैं,भोली भाली जनता (महिलाएं) इन तथाकथित ब्रम्हचर्य पालन करने वाले पण्डे पुजारियों की हवस के शिकार होते हैं, दरअसल सदाचार की खिल्ली उड़ाने वाले ही यही "हिन्दू तीर्थ क्षेत्र "और हिन्दू मठ हैं।
ऐसे में सरकारों या ठेकेदारों में अगर कोई हिम्मत शेष है तो अयोध्या,मथुरा क्या भारत के सारे ही तीर्थ स्थलों की खुदाई पुरातत्व विभाग से कराकर रिपोर्ट और खुदाई से प्राप्त सामग्री तथा शिलालेख और अवशेष उजागर करे दूध का दूध और पानी का पानी हो जाएगा,
अन्यथा झूठे धर्म और काल्पनिकताओं के नाम पर अन्याय करना बंद करे क्योंकि अन्याय का भी अंत निश्चित होता है.दरअसल हकीकत यह है कि यह भारत बुद्धमय था और आज भी बुद्धमय है बस जरुरत है असली भारत के इतिहास को खोजने की..