नई दिल्ली: यूपी का कुशीनगर एक प्रसिद्ध बौद्ध तीर्थ स्थल है. 1876 में अंग्रेज पुरातत्वविद ए कनिंघम ने कुशीनगर की खोज की थी. कई लोग इसे कौशल के राजाओं की नगरी कुशवती के नाम से भी जानते हैं. माना जाता है कि भगवान राम के पुत्र कुश की राजधानी होने के चलते इसका नाम कुशवती रखा गया.
घूमने के लिहाज से कुशी नगर एक पर्यटन स्थल है. पूरी दुनिया से पर्यटक यहां घूमने आते हैं. कई मंदिरों, स्तूपों के साथ-साथ यहां घूमने लायक बहुत सी जगह हैं.
कुशीनगर के रामाभर स्तूप में भगवान बुद्ध के महापरिनिर्वाण के बाद 16 महाजनपदों में उनकी अस्थियों और भस्म को बांट दिया गया. इन भस्मों और अस्थियों के ऊपर स्तूप बनाए गए. करीब 50 फुट ऊंचे इस स्तूप को मुकुट बंधन विहार कहा जाता है.
रामाभर स्तूप के नॉर्थ में स्थित यहां का जापानी मंदिर अपनी विशिष्ट वास्तु के लिए प्रसिद्ध है. अर्द्धगोलाकर इस मंदिर में भगवान बुद्ध की अष्टधातु की मूर्ति है. मंदिर सुबह 10 से शाम 4 बजे तक दर्शनार्थियों के लिए खुला रहता है. इस मंदिर की देखरेख जापान की एक संस्था की ओर से की जाती है.
जापानी मंदिर के ठीक सामने संग्रहालय है. इसमें बुद्धकालीन वस्तुओं, धातुओं, कुशीनगर में खुदाई के दौरान पाई गई मूर्ति, सिक्के और बर्तन रखे गए हैं.
संग्रहालय के बाद वाट थाई मंदिर यहां सबसे आकर्षण का केंद्र है. हाल ही में इस मंदिर को बनाया गया है. मंदिर का निर्माण थाईलैंड सरकार के सौजन्य से किया गया है. इस मंदिर में थाई शैली की भगवान बुद्ध की अष्टधातु की मूर्ति है.
मंदिर का वास्तु थाईलैंड के मंदिरों जैसा ही है. मंदिर की देख-रेख थाईलैंड की राजकुमारी करती हैं. मंदिर परिसर के चारों ओर भव्य बागवानी की गई है. पौधों का विशेष आकार भी पर्यटकों को अपनी ओर खींचता है.
कुशीनगर के विस्तार के साथ बनाए गए मंदिरों में से एक है चीनी मंदिर. मंदिर में भगवान बुद्ध की मूर्ति अपने पूरे स्वरूप में चीनी लगती है. इसकी दीवारों पर जातक कथाओं से संबंधित पेंटिंग अत्यंत ही आकर्षक है. मंदिर के बाहर सुंदर फव्वारा है.
महापरिनिर्वाण मंदिर से पहले बीच तालाब में बना भगवान बुद्ध का जल मंदिर और इसके सामने बना विशाल पैगोडा पर्यटकों के आकर्षण का केंद्र है. जल मंदिर तक जाने के लिए तालाब के ऊपर पुल बनाया गया है. इसमें कछुओं और बतख के साथ ही मछलियों को अठखेलियां करते देखना बहुत अच्छा लगता है.