धाविका हिमा दास-
क्यों यह हिमा दास हमारा नायकत्व नही पा सकती?
#############################
बहुजन समाज की बेटी हिमा दास 15 दिनों में दुनिया के पैमाने पर भारतीय ध्वज पताका फहराते हुये 4 गोल्ड मेडल हासिल कर एक शानदार स्वर्णिम इतिहास लिख चुकी है लेकिन देश मे इस पर जिस तरीके से चर्चा होनी चाहिए,भारतीय सरकार को जिस तरीके से इस बेटी के विजय अभियान पर गौरवांवित होना चाहिए,वह दिख नही रहा है क्योकि यह स्वर्णिम इतिहास मूलनिवासी समाज की बेटी ने रचा है।
यह जाति बड़ी क्रूर है जो जन्म लेने के साथ चिपकती है तो मिट्टी में मिलने तक साथ नही छोड़ती है।हमारी सारी योग्यता इस जाति के समक्ष बौनी हो जाती है।जाति महत्वपूर्ण तो शेष सारी चीजें बेमतलब हो जाती हैं इसलिए भारतीय सन्दर्भ में जाति की महत्ता को नकारना स्वयं को गफलत में रखना है।यह जाति हिमा दास की महत्ता को महत्वपूर्ण होने से रोक रही है।
बात हिमा दास की हो रही है तो जब वह हिमा "दास" ही है तो हमें वह सम्मान कैसे मिल सकता जो स्वामी को मिलता है।हिमा दास हो या और कोई प्रोजेक्ट करने वाली संस्थाएं इन्हें कत्तई प्रोजेक्ट नही करेंगी क्योकि यह देश भरशक बहुजन मेधा स्वीकारता नही है।हार स्वीकार है पर मूलनिवासी यशोगान स्वीकार नही है।अभी क्रिकेट में दुनिया ने देखा है कि क्या जाधव,क्या यादव या क्या मियां समी, इन्हें सेमी फाइनल नही खेलाया गया क्योकि इनकी जाति मजबूत नही थी।हम विश्व मुकाबले में भले फिसल जांय पर ये जाति से हीन लोग स्वीकार योग्य नही है।
हिमा दास 4 स्वर्ण पदक जीती है।मिल्खा सिंह व पीटी उषा को इसने पीछे छोड़ दिया है लेकिन इसके ऊपर गर्व नही है उन्हें जिन्हें जाति की श्रेष्ठता पर नाज है क्योकि यह "दास" जो है।
हिमा के हिमालय स्वरूप शौर्य पर निःसन्देह गर्व है हमें,बधाई बहादुर बेटी हिमा दास!
-चन्द्रभूषण सिंह यादव
प्रधान संपादक-"यादव शक्ति"
कंट्रीब्यूटिंग एडिटर-"सोशलिस्ट फ़ैक्टर"