अत्यंत दुखद
भारत कोई भूमि का टुकड़ा नहीं है...
एक जीता जागता राष्ट्र पुरूष है.
ये वंदन की धरती है.
अभिनंदन की धरती है.
ये अपर्ण की भूमि है,
ये तर्पण की भूमि है.
इसकी नदी-नदी हमारे लिए गंगा है,
इसका कंकड़-कंकड़ हमारे लिए शंकर है,
हम जीएंगे तो इस भारत के लिए
और मरेंगे तो इस भारत के लिए...
और मरने के बाद भी गंगा जल में
बहती हुई हमारी अस्थियों को
कोई कान लगाकर सुनेगा तो
एक ही आवाज आएगी
भारत माता की जय......।।
ૐ શાંતિ ૐ શાંતિ ૐ શાંતિ