सुरजा एस's Album: Wall Photos

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----- छोटी बहन -----

सुमित छोटी बहन सुनिधि को लेने स्टेशन गया और उसके जाते ही नेहा का बड़बड़ाना शुरू हो गया।
एक तो वैसे ही अभी नयना और नमन के स्कूल का नया सैशन शुरू हुआ है उनकी किताबों का, यूनिफॉर्म का,स्कूल की फीस, ऊपर से मां बापू की दवाइयां........ समझ नहीं आता इस समय सुनिधि को आने की क्या जरूरत है ....... कहती है भाई, मां, बापू से मिलने का मन कर रहा है अरे आज तक कुछ किया है कभी मां बापू के लिए ? सारी जिम्मेदारी उठाने का क्या हमारा ही फर्ज है क्या उनके मां बाप नहीं ?
अब उन्हें भी देने के लिए कम से कम एक सूट तो चाहिए ही मैंने कब से अपने लिए सूट नहीं खरीदा , खरीदना तो दूर सोचती भी नहीं। थक गई हूं सबकी जिम्मेदारियों को निभाते निभाते .......। नेहा के स्वभाव को सुमित अच्छी तरह जानता है ,वह यह भी जानता है कि उसके किसी भी रिश्तेदार के आने की सुनते ही नेहा के माथे में बल पड़ जाते हैं । घर में कोई भी आए सुमित की कोशिश रहती कि कोई ऐसी बात न हो कि आने वाले का अपमान हो।बहन सुनिधि के सामने भी नेहा ने जो बनाया सबने चुपचाप खा लिया हालांकि मां का मन था कि पूरे साल बाद बेटी आई है कुछ स्पेशल बनता मगर नेहा ने पहले ही इतना वबाल मचा दिया था कि वह कुछ नहीं बोली। सुनिधि एक रात रूकी और सुबह जाने के लिए तैयार हो गई। चलते समय इतना ही कहा अपना और भाभी का भी ध्यान रखा करें। सुनिधि आई और चली गई। उसके जाते ही नेहा सोफे पर पसर गई और एक लंबी सी सांस ली। सब अपने अपने काम में लग गए। रात में सुमित ने देखा उसके कमरे के कोने में एक बैग रखा है, उसने तुरंत नेहा से कहा शायद जल्दी में सुनिधि अपना बैग भूल गई और बैग उठाने को कहा। नेहा ने बैग खोलकर देखा तो सन्न रह गई। उसमें कुछ कपड़े , खिलौने और एक सफेद रंग का लिफाफा था जिसमें कुछ पांच सौ के तथा दो नोट दो हजार के थे। एक छोटा सा कागज जिस पर लिखा था "भाई कुछ कपड़े वह खिलौने भाभी और बच्चों के लिए उपहार स्वरूप हैं। रूपए आपके व मां बापू के लिए .......कुछ ले लेना अगर मैं कुछ लाती तो आप कभी स्वीकार नहीं करते। अपने हाथ से तुम्हें देती तो लेते नहीं इसलिए रखकर जा रही हूं। तुम मुझसे बड़े हो सदा तुमसे लेती रही हूं। पहली बार कुछ दिया है इंकार मत करना। .......…..... तुम्हारी बहन
सुमित की आंखों में नमी छा गई वह मन ही मन फुसफुसाया मेरी छोटी बहन कितनी बड़ी हो गई। सुमित नेहा को देख रहा था और नेहा चाहकर भी आंखें नहीं मिला पा रही थी। सुमित मन ही मन सोच रहा था एक रात के लिए मायके में आ कर बेटियां क्या ले जाती है ? अपने घर में सब कुछ होने पर भी मायके में आने के लिए बंद पिंजरे के पंछी की तरह फड़फड़ाती है। सुमित चुप चाप छत को ताकते हुए बहुत भावुक हो गया था।

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