मैं फेसबुक पर देखती हूँ तो मुझे 80% पुरुष ऐसे मिलते हैं जो नारी के अंगप्रदर्शन को उसका मौलिक अधिकार साबित करते हैं और इसे बड़ी सामान्य दृष्टि से लेते हैं, केवल 20% पुरुष ही ऐसे होते हैं जो यहाँ अनावश्यक अंगप्रदर्शन का विरोध जताते हैं......
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पर जब मैं सड़क पर निकलती हूँ तो ये प्रतिशत ठीक उल्टा हो जाता है,मीन्स 80% पुरुष छोटे कपड़े पहने या अंगप्रदर्शन करने वाली लड़की को घूरते हैं, कोई सीधे उसे देखता है, कोई आँखे टेढ़ी कर के देखता है, कोई सबकी नज़रे बचा के उसे देखता है तो कोई पलट पलट के निहारता रहता है , केवल 20% लोग ही तब सामान्य बिहेव कर पाते हैं.....
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यही दोहरा किरदार है समाज के ज्यादातर लोगो का , वो खुद की बहन को रात में घूमने, दारू पीने, अंगप्रदर्शन करने का अधिकार नहीं दे सकते पर दूसरों की बहनों के लिए पूरी लड़ाई लड़ते हैं.....
और यही दोहरा किरदार है बाजारवाद का भी ...... जो फिल्म, आइटम सॉन्ग और एडवर्टीजमेंट तक में नारी को भोग की वस्तु की तरह परोसता है ताकि लड़कियां खुल के ये सब करें और उनका धंधा चलता रहे....
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मैं ये नहीं कह रही कि मॉडर्न होना गलत है, ना ही मैं लड़कियों की उच्च शिक्षा, घर से बाहर निकलने या जॉब करने की विरोधी हूँ, मैं बस vulgarity (अश्लीलता ) की विरोधी हूँ। मैं जानती हूँ कि लड़के भी गलत होते हैं पर जब चारों तरफ नारी को भोग की वस्तु की तरह ही प्रस्तुत किया जा रहा तो या तो आप इसका विरोध करिये या सुरक्षात्मक दृष्टिकोण अपनाइए, शरीर को प्रॉपर ढकने वाले मॉडर्न कपड़े भी मार्केट में अवेलेबल हैं.... मॉडर्न बनिये....मगर अश्लील नहीं,...... और शायद फ़िल्म जगत की दुनियाँ को छोड़ दिया जाए तो समाज मे मुझे कोई ऐसी नारी नहीं मिलती जो प्रसिद्ध और प्रेरणादायक हो और साथ में भड़काऊ और अश्लील कपड़े में भी हो...
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इसलिए हम फीमेल्स को ये समझना होगा कि ये भले ही समाज का दोहरा मापदंड हो मगर नुकसान तो हम बहनों का ही हो रहा है , यहाँ मुखौटा ओढ़े लोग बहुत मिल जाएंगे जिन्हें अपनी बीवी तो संस्कारी चाहिए लेकिन उनकी पड़ोसन होनी चाहिए चंचल, शोख, हसीना टाइप की....... और शायद ऐसे ही कुछ लोग सोशल मीडिया पर बातें बना के वाहवाही बटोरने आते हैं.......