प्यारे दोस्तो
एक कविता
आप लोगो के साथ
share कर रही हूँ.
ये एक कविता ही नही
बल्कि एक एहसास है
जो मेरे दिल के बहुत ही करीब है.
गुजारिश है कि पूरी कविता
#पढ़ियेगा और अगर कोई
संदेश मन
को छू जाये तो अपना
विचार जरूर प्रकट किजियेगा
____________________
कितनी मिन्नते की थी
उसने तुम्हारे लिए,
मंदिर ,मस्जिद ,गुरुद्वारा,
कहाँ की खाक नही छानी
उसने....
नंगे पांव चली, मिलों
घुटनो के बल भी....
छाले पड़े,घाव भी बने,
लेकिन उनकी कहाँ थी परवाह उसे,
रोटियों से ज्यादा
गोलियां खा गई थी वह,
और कई बार
सूईयां चुभने का दर्द भी तो
बर्दास्त कर लिया था उसने,
हसकर ..
तुम्हारे लिए ही तो...
फिर तुम आये थे उसकी दुनियाँ मे,
नौ महीने अपने पेट मे
ढोने के बाद,
पत्थर का भी दिल दहला
देने वाली पीड़ा के बीच,
जना था उसने तुम्हे .....
समा गई थी सारे संसार की खुशी ,
उसके आँचल मे..
भूल गई थी वो उन सारे दुखो को,
जो उसने झेले थे ,
तुम्हे पाने की लालसा मे,
जब पहली बार उठाया था उसने ,
तुम्हे अपनी गोद मे....
तुम्हारी रगो मे भरा था
उसने अपना लहू,
उतार देती थी अपने
सीने का दूध ,
तुम्हारे उदर मे....
सुलाया करती थी वो तुम्हे
अपने सीने से चिपका कर ..
तुम्हारी किलकारी सुन
खुसी से हिलोरे मारने लग
जाता था उसका मन
और,
तड़प उठती थी वो,
तुम्हारी आँखों मे आँसू देखकर..
फिर तुम थोड़े से बड़े हो गए,
और थोड़े शैतान भी..
तुम्हारी कितनी ही शिकायते,
लोगो से सुनती थी वो,
फिर भी कुछ नही कहती थी.
कभी कभार डाटती थी, वह भी प्यार से...
बचपन मे तुम्हारी हर जिद को,
पूरा करती थी वो,
तुम्हे नही मालुम कैसे..
तुम्हे तो ये भी नही मालुम कि
मेला देखने के लिए तुम्हे पैसे कहाँ से देती थी वो...
और तुम्हारी जिद पर नया बस्ता भी तो लाकर,
दिया था उसने तुम्हे .
तुम थोड़े और बड़े हो गए थे,
माँ के आँचल का दायरा छोड़ा,
गाँव की हद पार की,
अपने छोटे से शहर को भी छोड़ दिया...
अपने देश की सीमायें भी तुम्हे नही रोक पाई ..
उसने तुम्हे समझाया था.....
कमाई कम ही सही,
पैसा नही चाहिए,
यही रहो...
आँखो के सामने ही रखना चाहती थी वो तुम्हे ,
लेकिन तुम नही माने...
चले गए.
वो रोई भी,
बहुत,
लेकिन क्या करती....
पाँच साल बाद तुम लौटे थे,
और उसे एक तस्वीर दिखाते हुए कहा था,
इसी के साथ रहता हूँ...
फिर क्या .
अपने सारे अरमानो को ,अपनी आँखो के सामने,
चूर चूर होते देखा था उसने...
कलेजे मे उठी टीस को कलेजे मे ही
दफन कर गई थी वो.
अगले दिन जो तुम गए,
फिर आज तक वापस नही लौटे.
उस दिन वो फिर रोई थी,
बहुत,बहुत,न जाने कितना....
अब तो तुम बहुत बड़े आदमी हो गए हो,
धन दौलत है,
शानो ,शौकत है,
रईसी मे गुजरते है दिन...
और उधर ,वो,
पैंसठ की हो गई है वो,
पिछले दो महीने से एक ही जगह पड़ी है..
शरीर गल कर पानी हो गया है,
गाल हड्डियों मे समा गए हैं.
आँखो से चेहरों की पहचान खत्म हो गई है,
तुम्हे देखने की ललक मे,
नींद नही आती,
बस .....एकटक निहारा करती है कमरे की सूनी छत को....
उस दिन घर पर जमा थे कुछ लोग,
सबकी आँखे नम थी ,
पर ....उसकी आँखो से आँसू आना
कब के बंद हो चुके थे..
लेकिन उस दिन ,
उसकी कनखियों पर जमा थी एक बूंद,
न जाने कब से...
धड़कनो की रफतार धिमी पड़ने लगी थी,
साँसे कब उसका साथ छोड़ दे,
कुछ पता नही..
उस पल उसने ,
लड़खड़ाई सी आवाज मे,
पुकारा था तुम्हारा नाम ...
एक दो तीन ,नही
कई बार..
क्या तुम्हे कुछ नही मालुम,
सचमुच ,कुछ नही मालुम..
तुमने ही तो भेजा था तार का जवाब,
अंग्रेजी मे लिखा था,
"sorry mom ,I can't come "
बस इतना ही,
तुम नही आ रहे..
सुनते ही एक हूँक सी उठी थी उसके मन मे....
होठो से फिर एक बार बुदबुदाई थी वो,
तुम्हारा नाम..
और फिर ,
कनखियों पर टिकी बूंद लुढ़क कर ,
समा गई तकिये मे..
तुम्हारा बाप
पत्थर बना बैठा रहा उसके पास,
अपने हाथों मे उसका हाथ लेकर....
बाहर,तेज हवा के साथ ,
बादलों का सीना चीरकर ,
पानी की कुछ बूंदे,
धरती को भीगोने लगी थी.
कौन थी वो..
तुम्हारी माँ...
धरती आकाश से मिल जाये,
मिल जाये पूरब से पश्चिम ,
हो सकता है....
लेकिन क्या तुम
मिल पावोगे ,
अपनी माँ से ........फिर.
माँ को समर्पित
Tagged: