कल एक बार फिर कुछ लड़के लड़कियों को जबरन रंग लगाने के बहाने उनके अंगों को छूने की कोशिश करेंगे और कुछ पानी वाले गुब्बारे मारेंगे और जब लड़की को गुस्सा आएगा, तो कहेंगे कि 'बुरा न मानों होली है.'
कल फिर होली पर . लड़के आपस में दोस्तों के साथ शर्त लगाएंगे कि फलाना लड़की को रंग लगाकर दिखा दे और कहेंगे कि चिंता पर मत कुछ नहीं बोलेगी बस कह देना कि बुरा न मानों होली है.
कुछ जानवर पर केमिकल वाला रंग डालेंगे और उन्हें गुब्बारे से मरेंगे और कहेंगे कि बुरा न मानों होली है. क्या यही सभ्य समाज का पर्व है?
क्या समाज को एक जुट करने के लिए बना पर्व पर छेड़खानी और अपनी कुंठा पूरी करने के लिए अवसर मात्रा रह गया है?