रंग बिरंगा है बचपन
बाग में खिले फूलों की तरह ।
रंग, रंगों के भी हैं
इसमें, इसमें
रंग, जीवन के भी ।
कहीं खुश है खिलखिलाता हुआ
उदास है कहीं, जूठे बर्तन धोता
कहीं झूका है, बस्ते के बोझ से
चौराहे पर गाड़ियों के शीशे पोंछते कहीं
कहीं भूख तो कहीं परिवार का स्वाभिमान ढ़ोता है बचपन
बाज़ार जाने की जिद में है कहीं
तो कहीं “बाज़ार” में व्यापार है बचपन ।
हर जगह
बचपन, बचपन खर्चता है
अपने दम से
होकर बेदम
भविष्य की दुकान पर ।।