यदि आपके पास मनचाही वस्तुएं नहीं हैं तो निराश होने की कुछ आवश्यकता नहीं। अपने पास जो टूटी-फूटी चीजें है उन्हीं की सहायता से अपनी कला को प्रदर्शित करना आरम्भ कर दीजिये, जब चारों ओर घोर घन अन्धकार छाया हुआ होता है तो वह दीपक जिसमें छदाम की मिट्टी, आधे पैसे का तेल और दमड़ी को बत्ती है। कुल मिलाकर एक पैसे की भी पूँजी नहीं है—चमकता है और अपने प्रकाश से लोगों के रुके हुए कामों को चालू कर देता है।
जब कि हजारों पैसे के मूल्य वाली वस्तुएं चुपचाप पड़ी होती हैं, यह एक पैसे की पूँजी वाला दीपक प्रकाशवान होता है, अपनी महत्ता प्रकट करता है, लोगों का प्यारा बनता है, प्रशंसित होता है और अपने आस्तित्व को धन्य बनाता है। क्या दीपक ने कभी ऐसा रोना रोया है कि मेरे पास इतने मन तेल होता, इतने सेर रुई होती, इतना बड़ा मेरा आकार होता तो ऐसा बड़ा प्रकाश करता?
दीपक को कर्महीन नालायकों की भाँति, बेकार शेखचिल्लियों जैसे मनसूबे बाँधने की फुरसत नहीं है, वह अपनी आज की परिस्थिति हैसियत और औकात को देखता है, उसका आदर करता है और अपनी केवल मात्र एक पैसे की पूँजी से कार्य आरम्भ कर देता है। उसका कार्य छोटा है, बेशक; पर उस छोटेपन में भी सफलता का उतना ही महत्व है जितना के सूर्य और चन्द्र के चमकने की सफलता का है।