प्रमोद कुमावत Pramod kumawat's Album: Wall Photos

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#भूलने_वाली_दवाई

मोहन की दवा की दुकान थी और उसदिन दुकान पर काफी भीड़ थी वो ग्राहको को दवाई दे रहा था.. दुकान से थोड़ी दूर पेड़ के नीचे वो बुजुर्ग खड़े थे मोहन की निगाह दो तीन बार उन बुजुर्ग पर पड़ी तो गौर से देखा उनकी निगाह दुकान की तरफ ही थी
मोहन ग्राहकों को दवाई देता रहा लेकिन उसके मन में उस बुजुर्ग के प्रति जिज्ञासा भी थी कि वो वहां खड़े खड़े क्या देख रहे है जब ग्राहक कुछ कम हुए तो मोहन ने दुकान का काउंटर दुकान में काम करने वाले लड़के के हवाले किया और उस बुजुर्ग के पास गया..
मोहन ने पूछा..क्या हुआ बाउजी जी कुछ चाहिए आपको.. मैं काफी देर से आपको यहां खड़े देख रहा हूं गर्मी भी काफी है इसलिए सोचा चलो मैं ही पूछ लेता हूं आपको क्या चाहिए...
बुजुर्ग पहले इस सवालपर कुछ सकपका से गए फिर हिम्मत जुटा कर उसने पूछा...बेटा ..वो काफी दिन हो गए मेरे दो बेटे हैं दोनो दूसरे शहर में रहते है हरबार गर्मी की छुट्टियों में बच्चों के साथ मिलने आ जाते हैं इसबार उन्होंने कहीं पहाड़ों पर छुट्टियां मनाने का निर्णय लिया है बेटा इसलिए इस बार वो हमारे पास नही आएंगे यह समाचार मुझे कल शाम को ही मिला.. कल सारी रात ये बात सोच सोच कर परेशान रहा.. एक मिनट भी सो नही सका.. आज सोचा था तुम्हारी दुकान से दवाई लूंगा.. लेकिन दुकान पर भीड़ देखकर यही खड़ा हो गया सोचा जब कोई नही होगा तब तुमसे दवा पूछूंगा...
हां हां बताइये ना बाउजी .. कौन सी दवाई चाहिये आपको अभी ला देता हूं.. आप बताइये..
बेटा कोई बच्चों को भूलने की दवाई है क्या..अगर है तो ला दे बेटा.. भगवान तुम्हारा भला करेगा..
इन शब्दों को सुनने के बाद मोहन की हिम्मत नही हुई आगे कुछ पूछने की ...उसके कान सुन्न हो चूके थे मोहन उनकी बातों का बिना कुछ जवाब दिये चुपचाप दुकान की तरफ लौट आया...
क्योंकि उस बुजुर्ग की दवा उसके बेटों के पास थी जो शायद विश्व के किसी मैडिकल स्टोर पर नही मिलेगी.. अब मोहन निशब्द काउंटर के पीछे खड़ा था...
मन में विचारों की आंधी चल रही थी लेकिन मोहन उस पेड़ के नीचे खड़े उस बुजुर्ग से नजरें भी नही मिला पा रहा था.. भरी दुकान भी उस बुजुर्ग के लिए खाली थी.. वो कितना असहाय था.. या तो वो खुद जानता था या उसका भगवान..

मोहन अब जब भी अपने शहर में ये सुनता कि "इस बार गर्मी की छुट्टियों में हम गांव न जाकर कहीं और घूमने जा रहे हैं तो वो पेड़ के नीचे उन बुजुर्ग की वेदना अंदर तक झंझोड़ देती थी..