पराश्रित होने पर मनुष्य को अपना सम्मान खोना पड़ता है। वह दूसरों की दया पर निर्भर रहता है। अत: इससे उसकी मानसिक परतन्त्रता प्रारंभ हो जाती है। यह सबसे बुरी गुलामी होती है। दूसरों की दया कृपा पक्ष पाने के लिए उसे अपनी आत्मा के विरुद्ध जाना पड़ता है। अपनी आत्मा को दबाना पड़ता है। अत: दान लेना हमारे लिए शरम की बात होनी चाहिये।
जो दूसरों से भिक्षा प्राप्त करके जीवन में सुख और सफलता चाहते हैं उन्हें सिवाय कष्ट निराशा पश्चाताप ओेर निरादर के अलावा कुछ नहीं मिलता। अत: अपने पैरों पर खड़े हो। दूसरों का मुह न ताकें। तुम मनुष्य हो कुत्ते नहीं कि किसी ने दया करके एक टुकड़ा फेक दिया और तुम दुम हिलाने लगे।
तुम ईश्वर के महान पुत्र हो। तुम सर्व समर्थ हो। तुम क्षमता वान हो। तुम केवल अपने असीम बल को भूले हुए हो। अपने ऊपर भरोसा रखो। अपनी महानता को सोचो। अपने अज्ञान का परित्याग करो। शेर के पुत्र होकर तुम बकरियों की तरह मिमियाते हो? याद रखे भगवान ने तुम्हें हाथ पैर बुद्धि सब कुछ दिया है। यदि परिस्थितियां अनुकूल नहीं है और तुम्हें किसी दूसरे का आश्रय ग्रहण करने को बाध्य होना पड़े तो उससे जल्दी से जल्दी भागने का प्रयत्न करो। आत्म निर्भर बनो।