।।अवधूताय शरणम् मम् पाहिमाम् शरणागतम्।।
श्मशान में राम चरित मानस का पाठ करने का हमारा जुनून था। एक बार बारिश के समय क्षिप्रा नदी पूर चल रही थी।अतः दाह संस्कार उपर बने चबुतरों पर हो रहा था।चूंकी हम रोजाना ७ घंटा पाठ करते थे।
इसलिए सुबह जल्दी आ गए थे।उस दिन ६ चबुतरों पर दाह संस्कार हुआ था।
हमारा मन सम दृष्टि सम भाव के कारण एक एक कर सभी चबुतरों पर से अंगार लेकर अपने कपाल पर लगा ली।पाठ का तीसरा दिन था अतः पाठ पूरा हुआ।
मैंने नवहापारायण को तीन भागो में बांटकर तीन तीन पारायण रोज के हिसाब से कर रहा था।
जब तक पाठ चल रहा था तब तक कुछ पता नहीं चलता परंतु पाठ पूरा होने के बाद सिर बहुत भारी लगने लगा।रात में जब सो रहा था तब स्वप्न में बहुत ही दुबला पतला शरीर धारी काले कपड़े पहने हुए शरीर पर भष्म लगी हुई दिखे घुस्से में बहुत सारी गालियां दे रहें थे।
पास में छोटी छोटी नालियों में से पानी बह रहा था। सुबह उठकर नहाने के पश्चात नित्यकर्म करके टॉवर चौक पर आया।स्वप्न का चिंतन चल रहा था।
क्या करना चाहिए।मैं २ नम्बर सिटी बस मैं बैठा।कहां जाना,क्या करना कुछ भी पता नहीं था।
मैंने कंडक्टर से पूछा उसने कहां K.D.PELESH जाएंगी।मैंने कहां ठीक हैं।शुरू से यैसी आदत रही की सिर्फ पहने हुए कपड़ों में ही कही भी चला जाता था।
सिटी बस मुकाम पर पहुंची मैं पहली बार इस जगह आया था।निचे उतरकर जानकारी की तो पता लगा ५२ कुंड में स्नान करते हैं।
जो लोग दुसरो के शरीर से बाह्य बाधाओं को हटाते हैं ,उनको ये भैरव बाबा शक्ति प्रदान करते हैं।
मैं निचे उतरा देखा तो स्वप्न का पूरा दृश्य प्रत्यक्ष था।
सिर्फ डाटने वाले बाबा नहीं थे । मैंने फुल की दुकान वाले से टावेल लिया और स्नान करने लगा।
बहुत आनंद आ रहा था।उनके नाराजगी का कारण भी समझ गया था।पूरे जीवन भर हजारों गुनाह करके आए इन लोगों को अपने सिर पर उठाकर रामायण पाठ कर के मुक्त कर दिया।
यह सब अनजाने में ही हुआ था।अतः शिवांश से क्षमा मांगकर मैं घर चला आया।
अवधूता अवधूता भूतेश्वर नाथाय अवधूता अवधूता।।
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