बुद्ध ने, महावीर ने, जिद्दु कृष्णमूर्ती ने, ओशो रजनीश ने, चाणक्य ने, विवेकानंद ने, एकहार्ट टोले, कबीर के दोहे से चौपाई में ऐसा ऐसा कहा गया...उस आश्रमो वालो से लेकर इस आश्रम वालो ने ऐसा ऐसा कहा। शास्त्रों में, कुरानो में, बाइबिल में, ऐसा ऐसा कहा गया।
उसने इसने से लेकर फलाने फलाने ने ऐसा था इसलिए ये सत्य है वो असत्य है।
ठहरो
जो भी कहा सब उसने इसने कहा।
अब प्रश्न उठता है हमने क्या कहा। तुम क्या कहते हो।?
#मेरी बातें "मेरी" ही बाते न हो तो कोई कहने का सार नही।
विशेष- #मूल_मौलिकता_सॉर्स का #सत्य सबका एक है, फिर वहां "#मेरी_बात_और_तेरी_बात" का कोई सम्बंध नही रह जाता उस मूल के होनेपन में।
क्योकि सत्य और असत्य सबका एक जैसा है बाकी सब बाहरी लपटे है।
लेकिन वह तभी संभव जब अंतस में जागना हो बीज अंकुरित हो। बाकी सब यूनिक होकर भी सब मे वही एक बैठा है। #संसार_मे_हम_से_लेकर_हम_में_संसार>>
जिसे "मैं" कहते है। मैं तुम में हूँ सबं में हूँ।
सार- शास्त्र को पी लो, बुद्धजीवीओ को पी लो हर माध्यम जहा जहा पीन का रस है, उन सब को पी लो। यह जो पीने का रस है वह यह व्यक्त करता है अभी खुद को उस अवस्था तक नही चखा है। जिस चखने से खुद के चखने की ओर हो जावे।
लेकिन मैं कहता हूँ जिस दिन खुद को पी लिया सबं स्वतः अपने मे पायेगे। फिर किसी को पीने की जरूरत नही सब अपने मे पाएंगे।
सचित अवस्थी