यद्यपि सेना के जनरल ये जानते थे कि कोई भारतीय पीएम इस बात से कभी सहमत नहीं होगा, तब भी उन्होंने शास्त्रीजी के समक्ष प्रस्ताव रखा कि कश्मीर में पाकिस्तान को रोकने का सबसे अच्छा विकल्प ये है कि पंजाब का फ्रंट खोल लिया जाए। जब पंजाब पर संकट बढ़ेगा तो पाकिस्तान हर स्थिति में पंजाब बचाएगा। कुछ विचार विमर्श के बाद शास्त्री जी ने भारतीय सेना को नया फ्रंट खोलने की अनुमति दे दी।
पाकिस्तान जिसने स्वप्न में भी नहीं सोचा था कि ये पांच - सवा पांच फुट का नेता ऐसा आदेश दे देगा जिसकी नेहरू युग में कल्पना भी नहीं हो सकती थी। देखते ही देखते भारतीय सेना लाहौर के किनारे खड़ी थी। वहीं पहुंचकर जीते हुए टैंक पर चढ़कर धोती पहने शास्त्रीजी ने ये छायाचित्र खींचवाई। ये अकेला छायाचित्र ये बताने के लिए पर्याप्त था कि वो समय निकल गया गया जब सैनिक कारखानों में ब्रैड बनाई जाती थी।
भारत ने युद्ध में जो कुछ जीता वो ताशकंद में हार दिया और खो दिया अपना सबसे प्रिय प्रधानमंत्री भी... शास्त्री जी के जाने की सबसे बड़ा मूल्य भारत ने यूं चुकाया कि एक बार उनके जाने के बाद जो परिवारवाद का कंलक हमारे माथे से चिपका, वो आज पूरे राजनीतिक व्यवस्था को खा चुका है। आज नमन है उस नेता को जिसने अमेरिका द्वारा सड़ा लाल गेंहू ना देने पर पूरे देश को सोमवार का व्रत रखवा दिया लेकिन हाथ नहीं फैलाए! शत शत नमन