दिये से तेल भरती लड़की पर लम्बी लम्बी पोस्ट लिखकर बुद्धि का ढिंढोरा पीटने वाले जरा इस पर भी लेखन करने का कभी साहस दिखाया करें,, सत्यानाश कर दिया इन क़ब्रिस्तानों ने वरना न जाने कितने भूखे लोगों के पेट भर जाते।
जैसे हिन्दुओ में पहले दाह संस्कार के बाद दिवंगत की याद में समाधी बनाई जाती थी , बाद में जगह की कमी के कारण समाधी वाला कार्य बंद कर दिया गया और 1 ही जगह बार बार दाह संस्कार होने लगा उसके बाद फिर लकड़ी बचाने के लिए विधुत शव दाह ग्रह का प्रयोग होने लगा ताकी जंगल का कटाव न हो ।
तो ऐसी कोई अन्ति संस्कार की विधि ईसाई और मुस्लिमो के लिए क्यों नही लायी जाती जिस से कब्रिस्तानों में बर्बाद हो रही भूमि का भी सही प्रयोग हो सके ।
काफी शहरों और गांवों में स्थिति यहां तक पहुंच चुकी है की गांव छोटे हैं और कब्रिस्तान बड़े हो गए हैं ।
जैसे आजकल मल्टी लेवल पार्किंग का सिस्टम सरकार ने ईजाद किया क्या ऐसे मल्टी लेवल कब्रिस्तान की अवधारणा क्या फलीभूत नही हो सकती ।
क्योंकि ऐसे ही कब्रिस्तान बढ़ते रहे तो वो दिन दूर नही की जगह की कमी में शहर गांव और जंगल सब कब्रिस्तान बन जाएंगे