#सारे_जहां_से_अच्छा #अल्लामा_इकबाल #गद्दार था जिसने भारत के विरोध के लिए हर हथकंडे अपनाये और कुछ कटुये और सेकुलर सूअर कहते हैं कि इकबाल राष्ट्रवादी था। थूकने का मन करता है इन दोगलो की सोच पर।
मिडिया और कम्युनिष्ट अक्सर हमें बताते हैं की सारे जहाँ से अच्छा हिन्दोस्तान हमारा (1905)..गीत के #महान_लेखक अल्लामा इकबाल हैं मगर अब जो मीडिया या कांग्रेसपोषित कम्युनिष्टों की किताबों ने हमसे नहीं बताया या झूठ बताया वो ये है की
● इसके लेखक इकबाल के दादा #सहज_सप्रू #कश्मीरी_पंडित थे। हमेशा की तरह मुस्लिम बहुल क्षेत्र के आस पास रहने के कारण इन्हें "शांतिपूर्ण ढंग" से मुसलमान बनना पड़ा.इनके पिता नूर मोहम्मद दर्जी थे..काफी समय तक इन्हें(इकबाल को) #इस्लामिक_मार्गदर्शन नहीं मिला तो हिन्दू सहअस्तित्व का विचार या पूरी दुनिया को मुसलमान बनाना इस विचार के बीच ये अटके रहे..
● इनका लिखा गीत बड़े चाव से हम गुनगुनाते हैं की..
"सारे जहाँ से अच्छा हिन्दोस्तान हमारा
हम बुलबुले है इसकी ये गुलसिता हमारा"
दरअसल ये कविता इकबाल ने स्वतंत्रता सेनानी "लाला हरदयाल" के आमंत्रण वाले एक कार्यक्रम में 1905 में पढ़ी थी। उस समय इकबाल लाहौर में व्याख्याता(Lecturer) थे, लाहौर में उस समय हिंदु बहुलता थी और तब तक 27 वर्षीय इकबाल ने "इस्लाम" और "कुरआन" आदि का गहन अध्ययन नहीं किया था अतः इकबाल ने "हिन्दू-मुस्लिम" एकता का गीत गाया..
● इसके तुरंत बाद इकबाल 3 साल के लिए बिदेश जाकर इस्लाम का गहन अध्ययन किया। विश्व को इस्लामिक बनाने और इस्लामिक कल्चर पर शोधपत्र और लेख लिखे.. फिर सन 1910 आते आते "अल्लामा इकबाल" असली "अल्लामा इस्लामिक इकबाल" बन गए। दरअसल 19 वी शताब्दी में सहज सप्रू नाम में कश्मीरी पंडित के मुसलमान बनाने के बाद उसके खानदान में इस्लाम के असली गुण 20वीं शताब्दी के शुरुवात में 1910 में सहज सप्रू के पोते अल्लामा इकबाल के रूप में ही आया। इस परिवर्तन के बाद अल्लामा इकबाल को "इस्लामिक दार्शनिक" और भविष्य के इस्लामिक देश का दृष्टा(visionary) माना जाने लगा..
● 1910 में अल्लामा इकबाल ने इस्लाम को जानने के बाद अलग मुस्लिमलैंड की कल्पना की और फिर हिन्दू मुस्लिम एकता की अपनी गलती का सुधार करते हुए "तराना-ऐ-मिल्ली" लिखकर पूरे विश्व को मुसलमान बनाने का स्वप्न देखा."तराना-ऐ-मिल्ली" में "सारे जहाँ से अच्छा..." गीत की शुरुवात इस प्रकार है जो कांग्रेस पोषित कम्युनिष्ट लेखको और सेकुलर नेताओं ने हमारे सामने कभी नहीं रक्खी।
【【'चीनो अरब हमारा हिन्दोस्तां हमारा,
#मुस्लिम है हम,वतन है सारा जहां हमारा।'】】
मतलब (Central Asia and Arabia are ours, Hindoostan is ours...We are Muslims, the whole world is ours)
भारत या इजराइल...रूस या जर्मनी...साइबेरिया से साइप्रस तक सबको मुसलमान बनाना है ये कहते हैं #अल्लामा_इकबाल्
● द्विराष्ट्रवाद का सिद्धांत सबसे पहले 1888 में सर सैयद अहमद ने दिया और हिन्दुओं के विरुद्ध अंग्रेजों का फेवर चाहा लेकिन अंग्रेजों ने जूता दिखा दिया.
उसके बाद जब जिन्ना के दिमाग में पाकिस्तान नाम का कोई शब्द नहीं था उस समय दोबारा इस भारत के विभाजन और पाकिस्तान की स्थापना का विचार को इक़बाल ने ही उठाया था।
● अल्लामा इकबाल ही वो व्यक्ति था जो जिन्ना को मुस्लिम लीग में ले आया और पृथक पाकिस्तान के लिए प्रेरित किया.. 1930 में इसी के नेतृत्व में मुस्लिम लीग ने सबसे पहले भारत के विभाजन की माँग उठाई।
●अल्लामा इकबाल के पाकिस्तान नाम के इस सपने फसल को "जिन्ना" ने लहलाया और काटा..
●अल्लामा इकबाल के शब्द हैं की:
A separate federation of Muslim Provinces, reformed on the lines I have suggested above, is the onlycourse by which we can secure a peaceful India and save Muslims from the domination of Non-Muslims. Why should not theMuslims of North-West India andBengal be considered as nations entitled to self-determination just as other nations in India and outside India
● इकबाल को पाकिस्तान में राष्ट्रकवि माना जाता है। और भारत की दृष्टि से देखें तो ये सबसे बड़ा गद्दार होगा क्योंकि ये उन शुरुवाती लोगो में से था जिन्होंने भारत विभाजन और पाकिस्तान की नींव रक्खी..
●आज हम सारे जहां से अच्छा.....कर कर के इकबाल को हिन्दू मुस्लिम एकता का प्रतीक बताते हैं। जबकि सत्यता ये है की ये इकबाल जिन्ना का राजनैतिक गुरु था जिसने सबसे पहले भारत को तोड़ कर अलग इस्लामिक देश बनाने का विचार दुनिया के सामने रक्खा..
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