देशभक्त बनो - जिस जाति ने अतीत में हमारे लिए इतने बड़े बड़े काम किये हैं, उसे प्राणों से भी अधिक प्यारी समझो। हे स्वदेशवासियों! में संसार के अन्यान्य राष्ट्रों के साथ अपने राष्ट्र की जितनी ही अधिक तुलना करता हूँ, उतना ही अधिक तुम लोगों के प्रति मेरा प्यार बढ़ता जाता है। तुम लोग शुद्ध, शान्त और सत्स्वभाव हो, और तुम्ही लोग सदा अत्याचारों से पीड़ित रहते आये हो - इस मायामय जड़ जगत् की पहेली ही कुछ ऐसी है।
"स्वामी विवेकानन्द" जी सदैव कहा करते थे कि जीवन का मुख्य उद्देश्य - *"परमात्मा की प्राप्ति"* है। हम विचार करें कि क्या हम इस भावना से आगे बढ़ रहे हैं?
"स्वामी विवेकानन्द" जी ने भारत की आध्यात्मिक, धार्मिक, सांस्कृतिक, राष्ट्रीय और राजनैतिक सोच को एक नई दृष्टि प्रदान की। उस समय के सुप्रसिद्ध राजनैतिक विचारक और भगवद् गीता के भाष्यकार लोकमान्य तिलक भी "स्वामी विवेकानन्द" जी का दर्शन करने बेलूर मठ आये थे। महर्षि अरविन्द तो साधना में कई दिनों तक "स्वामी विवेकानन्द" जी का दर्शन करते रहे थे। सारे देश में "स्वामी विवेकानन्द" जी ने एक नई जागृति ला दी थी। सारा देश मानो उनके आह्वान से मोह-निद्रा से जागने लगा था। देशभक्ति की भावना हर नवयुवक में हिलोरें लेने लगी थी। "स्वामी विवेकानन्द" जी ने हमें संदेश दिया था - *"उत्तिष्ठत जाग्रत प्राप्य वरान्निबोधत'* यानी उठो, जागो और जब तक लक्ष्य मत प्राप्त कर लो, तब तक कहीं मत ठहरों।" मगर क्या हम ऐसा कर रहे हैं?
भारत विश्वगुरु था और फिर विश्वगुरु बन सकता हैं - इसे "स्वामी विवेकानन्द" जी ने प्रमाणित कर दिया। आवश्यकता केवल इस बात की है कि हम भारतवासी "स्वामी विवेकानन्द" जी द्वारा निर्दिष्ट आदर्शों का अनुसरण करें और तदनुकूल आचरण भी करें।
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