*आज महिला दिवस के अवसर पर इससे अच्छा सन्देश क्या हो सकता है*
#स्त्रीमोह_तिमिर_भाष्य
#नारी !
स्त्री-जाति संसार में सम्माननीय है। स्त्री भोग की वस्तु नहीं है। जो उन्हें इस रूप में देखते हैं वे नीच, पामर, कामी, दुष्ट व्यक्ति हैं और उन्हें मानव-शरीर के परित्याग करने के बाद नरकोपम निम्न योनियों में जाकर कष्ट भोगना पड़ता है।
नारियाँ रत्न हैं, जिसके गर्भ से राम, कृष्ण, बुद्ध, गौतम, कणाद, विश्वामित्र, मनु, वशिष्ठ, नारायण, परशुराम, युधिष्ठरादि पाण्डव, भीष्मपितामह, द्रोणाचार्यादि महारथी, रामकृष्ण परमहंस , विवेकानन्द, तिलक, गोखले, आदि पुरुषों का जन्म हुआ है । भारत के अतिरिक्त विदेश में भी अनेक महापुरुषों को जन्म देने वाली महान् यशस्विनी नारियाँ हैं, अतः नारियाँ पूजनीया हैं । पुरुष और नारी जीवनरूपी गाड़ी के दो पहिए हैं । पुरुषों के समान ही स्त्रियों को अधिकार और विकाश का अवसर मिलना चाहिए । उन्हें घर की दीवारों के बीच कैद रखकर उन्हें अपने भोग की वस्तु समझना नितान्त अन्याय अथवा पाप है। माता, बहन, पुत्री, पत्नी के रूप में स्त्रियों को विभिन्न प्रकार के कार्यो का निर्वाह करना पड़ता है । देश की आजादी के लिए हमारी माताओं तथा बहनों ने जो त्याग, बलिदान का परिचय दिया है; वह प्रशंसनीय है।
नर नारी दोनों के शरीर में जो आत्मा है; वह चेतन है। मनुष्यों का स्त्रियों के प्रति आकर्षण भोग की दृष्टी से होना अनुचित है । सन्तानोत्पत्ति के निमित्त गृहस्थ जीवन में पति-पत्नी का संयमपूर्वक संयोग वांच्छनीय है, किन्तु स्त्रियों को मात्र भोग का साधन समझकर उसमें ही सदा लिप्त रहना ''स्त्रीमोह-रूपी तिमिर'' है ।
अतः मानवमात्र का यह कर्तव्य है कि वे स्त्रियों के प्रति अपने विचार को शुध्द और सम्मानपूर्ण रखें।
स्त्रीमोह तिमिर भाष्य ~अनन्त श्री महर्षि सद्गुरु सदाफलदेव जी महाराज ...