दे दिजीए न साहब..आपके पास ऐसे भी तो रद्दी की तरह ही तो पड़ी रहेगी न☺कहके साक्षी जिद करने लगती है घर मालिक से। एक सांवली सी खूबसूरत लड़की जिसका नाम साक्षी है जिसकी उम्र कोई 14 साल है जो रद्दी कागज और टूटे फुटे समान खरीदने की काम करती है।
घर मालिक -# बिलकुल नहीं। ये तू ले जाके किसी रद्दी मे बेच देगी और ये मेरी 12 कक्षा की किताब है जब मैं स्कूल पढ़ता था। माना मेरी पढ़ाई पूरी हो गई और शादी भी और बाल बच्चे भी मगर मैंने अपनी स्कूल की यादों को अभी तक बचाके रखा है।
साक्षी -# बेहद अच्छी बात है साहब, वैसे मै आपकी इस किताब को रद्दी समझकर नहीं वल्की पढ़ने के लिए माँग रही थी।
घर मालिक -# HAHAHA..मुझे तू पागल समझती है? ज्यादा बहस न कर और जितनी रद्दी समान मैंने तूझे दी है इसे समेट और निकल जा मगर इस किताब को तू भूल ही जाता तो अच्छा है।
साक्षी -#आपकी इस बुक की मैं आधी किमत दे सकती हूँ मैं आपको।
घर मालिक- उम्र है बित्ते भर की और जिद देखो जैसे किसी रियासत की राजकुमारी की तरह, तू इस बुक की आधी किमत देकर फिर रद्दी मे कितने मे बेचेगी पागल? नुकसान तो तेरा ही होगा
साक्षी- जिम्मेदारीयों ने नाफा नुकसान का एहसास ही भुला दिया है। रही जिद की बात तो, जिंदगी के साथ हमने कुछ ऐसे समझौते किये है कि..न जाने कब मुझे हालत ने जिद्दी बना दिया पता ही नहीं चला। आपकी बुक मैं खुद पढ़ने के लिए माँग रही थी। रद्दी समझकर नहीं एक रोशनी समझकर, कल को कोई मुझे विद्वान भाई का अनपढ़ बहन बोलके उगली न उठाये मुझे?