"बीबी जी ! कल मैं नहीं आएगी . मेरा बेटा का जन्म दिन है ." कामवाली ने रसोई में काम करते हुए कहा था और मालकिन ने जवाब दिया था -
"ठीक है , मैं ख़ुद ही काम कर लूंगी . पर तुम सब शाम को हमारे घर जरुर आना . सभी का मतलब सभी ...ठीक आठ बजे ."
काम वाली चली गई . वह भी मन में न जाने क्या-क्या सोच रही थी . बीबी जी पहले तो कभी ऐसा नहीं की थीं . हो सकता है कोई जरुरी लोग आने वाले होंगे इसलिए बुलाया होगा . उसका बेटा पहले भी कई बार घर आ चुका था .
रेखा ने उसके जाने के बाद एक लिस्ट बनाई और पति को दे दी . पति को ताकीद भी किया था कि शाम को ये सब आना ही चाहिए . शाम को सामान के साथ लौटा पति अपनी पत्नी के चेहरे को पढ़ रहा था .
"क्या हुआ ? किस का इंतज़ार कर रही हो ?"
"आठ बज गए और ये लोग अभी तक नहीं आये . समय का पाबन्द होना चाहिए ."
अभी बात कर ही रहे थे कि कामवाली और उसके परिवार ने प्रवेश किया .
"नमस्ते साहब !...नमस्ते बीबी जी . हम लोग आ गए ."
"आओ ...अन्दर आओ सभी ." वह उन्हें अन्दर के कमरे में ले गई . जहाँ एक टेबल पर केक था . गिफ्ट्स और बेटे के लिए कपडे थे .
"अरे! बीबी जी , आप हमें बताये ही नहीं कि आज आपका जन्म दिन है . मैं आपके लिए गिफ्ट लेकर आती ." कामवाली बोली .
"हाँ, जन्मदिन है तभी तो बुलाया तुम्हें . इधर आओ बेटा और ये केक काटो ." मालकिन ने कहा .
सब हैरान थे और पतिदेव मुस्कुरा रहे थे . केक काटने के बाद सभी ने केक खाया . मालकिन ने उन्हें फिर आदेश दिया . चलो अब खाने का वक्त हो रहा है . सभी को खाने की टेबल पर बैठा दिया और खाना परोसने लगीं .
"मालकिन ! कोई ऐसे भी करता है क्या ? आप हमको घर बुलाया , जन्म दिन का केक भी मंगाया और अब खाना भी खिला रही हो ." कामवाली बोली .
"तुम हमेशा मेरी मदद करती हो . अगर आज तुम्हारी ख़ुशी में मैं शामिल न हो सकूँ तो क्या फायदा . तुम ने तो एक बहिन की तरह मेरी सेवा की है . मेरा भी तो कुछ फ़र्ज़ बनता है न ." मालकिन के कहने के साथ ही कामवाली की घिग्गी बंध गई . उसने कुर्सी से उठ मालकिन के पैर छूने चाहे तो मालकिन ने उसे गले लगा लिया .