"जीवन में हार न मानने वाली स्वाभिमानी कर्मठ महिला"
इस स्वाभिमानी महिला का पति नहीं रहा, बच्चों ने साथ छोड़ दिया. नाते रिश्तेदारों ने सम्पत्ति से वंचित कर दिया परन्तु बचपन में अपने पिता के साईकिल मरम्मत के कार्य में हाथ बंटाने के कारण इस हुनर से पारगंत हो गई. बस ठान लिया और उधार के पैसे से शुरु कर दिया पंचर बनाने का काम. बुढ़ापे ने भी हार मान ली और चल पड़ा इसका व्यवसाय. गर्व के साथ अपना जीवन यापन तो करती ही है, कई लोगों को आश्रय भी दे रक्खा है इस कर्मठ महिला ने...
शत शत नमन है इसके साहस को....