जब भी जीवन को समस्या से ग्रसित पाओ, तपस्या करो। सच्चे अर्थों में समस्या का समाधान ही तपस्या है। चलिए पहले समस्या देखें फिर उसका समाधान देखें, तपस्या अपने आप समझ में आ जाएगी।
समस्या है- मन में उद्वेग, आवेग, अशान्ति। मन में कभी उद्वेग आए, आवेग आए, अशान्ति आए तो मन खिन्न हो उठता है, समस्याग्रस्त हो जाता है। ये उद्वेग, आवेग, अशान्ति क्यों आती है? जीवन में कभी अनुकूल संयोग होते हैं, कभी प्रतिकूल संयोग होते हैं। अनुकूल संयोग होते हैं तो मन खुश रहता है, प्रतिकूल संयोग होते हैं तो मन खिन्न हो जाता है। कभी विषयों की लालसा मन में जागती हैं, उसे पा लेते हैं तो कुछ देर के लिए थोड़ी खुशी होती है और जब नहीं पा पाते हैं तो मन खिन्न हो उठता है। जो हम चाहते है वह मिल जाता है तो मन प्रसन्न होता है, नहीं मिलता है तो मन खिन्न होता है। संयोगो की अनुकूलता का न बन पाना एक बड़ी समस्या है, प्रतिकूल संयोगों का आ जाना एक बड़ी समस्या है, मन पर तनाव का हावी हो जाना एक बड़ी समस्या है और चित्त में चिंता का हावी हो जाना एक बड़ी समस्या है। सारी समस्याएँ इनमें समाहित हैं। अनुकूल संयोगों का अभाव होना, प्रतिकूल संयोगों का जुड़ जाना, मन में तनाव आ जाना, चित्त में चिन्ता का आना आपकी समस्या है।
समस्याएँ दो प्रकार की हैं- शारीरिक समस्याएँ और मानसिक समस्याएँ। शारीरिक समस्या, समस्या नहीं है; असली समस्या मानसिक समस्या है। मैं आपसे कहता हूँ इस सारी समस्या का समाधान तपस्या है। कैसे? हमारे यहाँ तीन प्रकार के तप बताए हैं। बारह तप भी हैं; मैं आपसे इन तपों से भिन्न बात करना चाहता हूँ। तप तीन प्रकार के हैं- 1. शारीरिक तप 2. वाचिक तप और 3. मानसिक तप। व्रत करना, त्याग करना,
उपवास करना तपस्या करना आदि ये सब शारीरिक तप है। मैंने आपको छुट्टी दी तुमसे शारीरिक तप नहीं बनता तो मत करो। वाचिक तप करो। वाचिक तप मतलब वाक-संयम। तुमसे कोई अपशब्द बोले तो उस समय मौन रख ली; तपस्या हुई कि नहीं हुई? आप उपवास तो कर सकते ही पर किसी की बात की बरदाश्त (सहन) नहीं कर सकते। *भोजन छोड़ना सरल है पर किसी के दुर्वचन को सहना बहुत कठिन है*।
ये तपस्या है। इस तपस्या से समस्या का समाधान है क्योंकि किसी ने आपसे अपशब्द कहा, उस अपशब्द ने आपके दिमाग में चक्कर काटना शुरु कर दिया, सौ प्रकार के विकल्प आने लगे, टेंशन हो गया, उसने मुझे ऐसा बोल दिया। उसने मुझे अपमानित कर दिया, वह मुझे नीचा दिखाने की सोचता है, देखता हूँ, बड़ी औकात बढ़ गई है उसकी। अच्छा! उसने मुझे गधा कह दिया, मुझे गधा कहता है, बहुत भाव बढ़ गए हैं, एक दिन में धूल चटा दूँगा। ऐसी पटकनी दूँगा कि उठ नहीं पाएगा; मुझे गधा कहता है। सामने वाले ने एक बार गधा कहा और तुमने खुद को कितनी बार गधा बना दिया? जैसे शान्त सरोवर में किसी ने एक कंकड़ फेंका और वह कंकड़ वलय दर वलय बनाते-बनाते पूरे सरोवर को घेर लेता है। तुम्हारे कान में एक शब्द पड़ा, तुम उसे पकड़कर बैठ गए और उसने तुम्हें नीचे से ऊपर तक हिला दिया। अशान्त बना दिया, उद्विग्न बना दिया, खिन्न बना दिया। यदि तुमने उस समय ये सोच लिया कि मुझे वाचिक तप करना है, कोई मुझे कुछ भी बोल दे लेकिन मुझे कोई भी उल्टी प्रतिक्रिया नहीं करना है, हँसकर टालना है। बोलो! इसमें कोई कठिनाई है।
आज से नियम ले लो, अब मुझे कोई गाली भी देगा तो मैं कुछ नहीं बोलूँगा। *प्रतिकूल प्रसंगो को समता से सहना बहुत बड़ी तपस्या है। सच्चे अर्थों में समता ही सबसे बड़ी तपस्या है*