कल से बहस छिड़ी हुई है 497 पर...
कतिपय ज्ञानी पाठक मुझे सुप्रीम कोर्ट में फैसले का विरोधी मान बैठे हें और नारी स्वायत्तता का भी
बराय मेरी भावना कुछ और ही थी
हर बात के कई पहलू हो सकते हैं और हर कथन के कई अर्थ भी
रोको, मत जाने दो
रोको मत, जाने दो
एक कोमा ने पंक्ति का मतलब ही बदल दिया
यही में कहना चाहता हूं, जो आता हैं इनबॉक्स में ज्ञान पेल जाता हैं और तो और ऐसे ज्ञानी भी जिन्हें एक लेख पूरा पढ़ के समझना भी नही आता
मिल गया ऐसा कोई तो कसम से जांगिया खुलवा कर पिछवाड़े पर हरी शंटी से 50 निशान बना दूंगा
स्याला माइला...
बात पूरी समझो स्त्री स्वतंत्र है और रहे सदैव मेरा यही मानना हैं
आप भले मानुस ऐसे हैं कि सिनेमा हॉल में 12 दफ़े उसके दूसरी और बैठे शख्स को घूर कर देखते हैं..... क्यूं क्या तुम्हारी ब्याहता उसका हाथ पकड़ लेगी क्या.....
बाजार अकेले नही जाना.....अभी तुम अकेले ही शादी किये हो क्या.....या चार रात पहले तुम ज्यादे दारू पीकर सो गये थे...अब वो किसी और के साथ भाग ही जायेगी.....
रुको यार
बाहर आओ.....
या तो उसे ज्यो हैं त्यों ही रहने दो
या फिर उसे पूरा फ्रीडम दो
कम से कम दिखावा मत करो....
और स्त्रियों तुम भी...... 497 का मतलब समझी हो या यूंही ढोल नगाड़े लेकर 15 अगस्त मनाने निकल पड़ी हो
यौनाचार दो बालिग जिस्मो के आपसी सहमति और सुख का विषय हैं ये स्वछंदता नही हैं
राह चलते किसी से यौन सम्बन्ध कोई बना सकता हैं क्या.....
स्त्री पुरुष से प्रेम पहले करती हैं जिस्म बाद में सौंपती हैं और जब जिस्म सौंपती हैं तो रूह निकाल कर प्रेमी की रूह में मिला देती हैं और फिर ताउम्र उसी में रमी रहती हैं
जिस्म का समागम समय से तय होता होगा, आत्मा का समागम समय के बंधन से परे हैं....
फिर क्या....
कहा का फ़ैसला.... क्या कोर्ट का आदेश.....
स्त्री जिसे नजर में उतार ले तो फिर उसका कलेजा शेरनी का हो जाता हैं वो अगर चाहना कर बैठी तो फिर दुनिया का कोई 'मिलार्ड' उसपर कोई कानून लागू नही करवा सकता....
जाओ शुक्र करो कि स्त्री अभी परिवार, समाज और संस्कृति की वाहक बनी हुई हैं..!
और हमारे संस्कारो कि जड़े उतनी उथली नही हुई हैं कि उसे कोई अप्रासंगिक कानून तोलमोल सके..!! ✍️सुनील
#कॉपी_पवन_आर्या