अलख जगाते है दुआ सलामती की लेकर ढोल नगाड़े हम।
घर घर खुशियों की सौगात बांटते खुशियों के बंजारे हम।।
जिसने हमें जन्म दिया उसने ही हमारा बहिष्कार किया,
दोष भला किसको दे हम सबने ही तिरष्कार किया,
फिर भी हर हाल में जीते है किस्मत के यूं मारे हम...
भिखारी से बदतर जीवन है जो दर दर की खाक छानते है,
सामने हम पर तरस है करते पीठ पीछे सब दुत्कारते है,
सबसे उम्मीद की आस ताकते उपेक्षित और बेसहारे हम...
ईश्वर की अद्भुत देन को सबने मनोरंजन मात्र बना डाला,
हम किन्नर महंतो को सबने क्यों उपहास का पात्र बना डाला,
कब तक समाज से संघर्ष करें विपरीत दिशा के धारे हम...
ऋषि मुनियों ने कर्मकांड पद्धति का था जब निर्माण किया,
हवन यज्ञ की वेदी में था हम को भी उचित स्थान दिया,
भुला दिया जिस ब्रह्म विद्या को उसी जयघोष के जयकारे हम....