सच्ची दक्षिणा
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कितनी चहल पहल थी आज "दीन दयाल वृद्धानाथ आश्रम" में एक ऐसा आश्रम जो अपने आप में एक नया उदहारण था जहाँ पर वृद्धो तथा अनाथ बच्चो को एक ही जगह रखा गया था। जो बुजर्ग अपने बच्चो द्वारा
निकाले जाते है , और जो अनाथ बच्चे लोग पैदा करके छोड़ देते है वो सब एक दूसरे का सहारा बन कर रहते है इस आश्रम में। पिछले 20 सालो से सलोनी इस आश्रम का सञ्चालन कर रही थी। आज मास्टर दीनदयाल सलोनी के बाबू जी की जयंती थी , इस वजह से चहल पहल थी। मुख्य मंत्री जी ने आना था सलोनी को सम्मानित करने, वो सलोनी जिसने अपना सर्वस्व जन सेवा में लगा दिया। सारी उम्र जिसने सुख का एक लम्हा नहीं देखा, अपना सुख दुसरो के सुख में देखा , बहुत कम लोग होते है जो अपने खून पसीने से दुसरो की बगिया सजाते है। अपनी ख़ुशी इसी में देखते है। समारोह समाप्त हुआ उसे प्रशश्ति पत्र मिला। पहली मिसाल थी सलोनी ऐसी आईएएस अफसर और अभिमान रत्ती भर भी नहीं, उम्र भर जिसने शादी न करने का प्रण लिया हो आप समझ सकते हो किसी होगी त्याग की देवी।
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आज की रात चांदनी रात, ठंडी शीतल बयार चल रही थी खिड़की से आकर सलोनी को तरंगित कर रही थी, आज नींद उस की आँखों से कोसो दूर थी, आज उसके मन रुपी झील में किसी ने कंकर मार दिया था और लहरें हिलोरे ले रही थी। अकेले जीवन काटना भी रेगिस्तान में उगे पेड़ की तरह जिसको पानी भी मुश्किल से नसीब होता है, या सुने बियाबान जंगल में कोई बच्चा अपने अभिभावकों से बिछड़ गया हो। हाँ कोई भी नहीं था आज सलोनी का, सलोनी अतीत के पन्ने पलटने लगी , जब 8 साल की थी एक भयानक एक्सीडेंट में उसके माता पिता चल बसे। एक छोटी बहिन ऋतू और वो केवल 2 ही रह गए थे। किसी तरह चाचा चाची ने कुछ दिन निवाले जरूर खिलाये मगर, जानवरो से बदतर जिंदगी दी उन्हें, घर का सारा काम करवाती थी, मारती पीटती थी, पता नहीं मासूम बच्चियों से चाची की क्या दुश्मनी थी। चाचा था चोरी छिपे उनको पैसे दे देता था, लेकिन अपनी बीवी से डरता था इसलिए चाची को कुछ कह नहीं पाता था
कहते है पाप का घड़ा भी भर जाता है तो छलक जाता है, सलोनी और ऋतू इतने परेशां थे , एक दिन चाचा ने दोनों को दूर के मामा रघु के यहाँ छोड़ दिया। वो मां जिनकी कोई औलाद नहीं थे दोनों बच्चियों को बहुत प्यार करते थे। कहते है जिसने चोगा दिया वही दाना देगा , मामा मामी थे गरीब पर दिल के बहुत अच्छे थे। मामा मजदूरी करते थे , मामी लोगो के घर झाड़ू बर्तन. वही गांव की पाठशाला में उनका दाखिला करा दिया मामा ने। दोनों ही पढाई में होशिआर थी , सलोनी पढाई के साथ साथ मामी के साथ काम में मदद भी करवा देती थी। सरकारी स्कूल के मास्टर दीं दयाल जी बड़े ही अच्छे स्वाभाव के थे। दोनों बच्चों को बड़े प्यार से पढ़ाते थे छुट्टी के बाद भी सलोनी उनके घर पढ़ने जाती थी। मास्टर जी का बेटा राहुल उस समय कान्वेंट स्कूल में शहर पढ़ने जाता था। सलोनी 15 साल की हो हो चली थी जब वो दसवीं क्लास में थी ऋतू आठवीं में।
राहुल से भी सलोनी काफी कुछ पढ़ लेती थी ,धीरे धीरे वो राहुल से घुलने मिलने लगी थी , उसके मन मंदिर में राहुल के सपने बसने लगे थे वो
मन ही मन उसे चाहने लगी थी। पर राहुल को कभी कह नहीं पायी, भारतीय नारी के खून में ही ऐसे संस्कार होते है अपने प्यार का इजहार आसानी से नहीं कर पाती। अक्सर कहते है वक़्त एक सामान नहीं रहता जब नसीब के ख़राब दौर आते है तब वो चलते रहते है। हरे पेड़ भी बसंत में सूख जाते है , बसंत में भी पतझड़ का मौसम आ जाता है। जब दाना डालने वाला ही नहीं रहे पंछियो को जीना मुहाल हो जाता है। एक दिन मामा मामी हरिद्वार जा रहे थे एक रेल हादसे में दोनों की जान चली गयी।
सलोनी और ऋतू पर तो दुखो के पहाड़ ही टूट पड़े, अंतिम संस्कार कोन करेगा इसके लिए भी गावं में बहस हुई। मास्टर जी समझदार थे, उन्होंने सलोनी से ही अपने मामा मामी का अंतिम संस्कार करवाया, क्युकी उनके आगे पीछे और कोई नहीं था।
अब इन बच्चों का दुनिया में कोई नहीं था। अकेली लड़किया आज के समय में कहाँ सुरक्षित हो सकती है , मास्टर दींनदयाल जी उन्हें अपने घर ले आये। तूफ़ान के बाद कश्ती साहिल पर कभी कभी ही पहुँचती है। किस्मत वाली थी दोनों जिनको मास्टर जी जैसा किनारा मिला। सलोनी के आँखों से अश्रु धारा बह निकली सलोनी ने मास्टर जी से कहा मेँ ऐसे कैसे रह सकती हूँ। तब मास्टर जी पत्नी सुलोचना देवी ने कहा तुम मेरी बेटियों जैसी ही नहीं बेटी ही हो, कभी मुझे पराया मत समझना। बेटी तुम लोग पढ़ो लिखो किसी प्रकार की चिंता मत करो। आंसू दोनों की आँखों से बहे जा रहे थे , सलोनी सुलोचना जी के गले लग गयी, दोनों माँ बेटी गले लग कर रोती रही। उधर मास्टर जी भी कोर भिगोये बैठे थे बोले "बेटा मेरे होते हुए तुम अकेला मत समझना "
सलोनी मास्टर जी के गले लग गयी बोली बाबू जी क्या में आपको बाबू जी बुला सकती हूँ
"क्यों नहीं बेटा " उन्होंने ऋतू और सलोनी दोनों को गले लगा लिया "आज से में तुम्हारा पिता हूँ मेरी बच्चियों
राहुल भी पीछे खड़ा आँखे नम किये बैठा था
4 कमरों के घर में दोनों बहनो को एक कमरा दे दिया। राहुल पढाई में मेधावी छात्र था , वो दोनों की पढाई में मदद करता। सलोनी मन ही मन राहुल को इतना चाहने लगी लेकिन कभी कह नहीं पायी। कभी कभी प्यार अहसान के आगे नतमस्तक हो जाता है यही हाल सलोनी का था।
राहुल ने बी टेक किया और MBA के लिए लंदन चला गया। सलोनी मन मन में तड़प के रह गयी , इंसान जिसे चाहे वो सामने रहे वो ही सब्र बहुत रहता है चाहे वो अपना हो या न हो। राहुल को भुलाने के लिए सलोनी ने अपने आप को पढाई में झोक दिया , और सिविल सर्विसेज की परीक्षा पास कर ली और जिला कलेक्टर नियुक्त हो गयी। ऋतू ने भी बीकॉम कर ली थी , और ऋतू को बैंक में नौकरी मिल गयी थी। सलोनी को सरकारी आवास मिल गया था वो ऋतू को अपने साथ ले जाना चाहती थी, पर बाबूजी ने कहा बेटा तुम्हारी मजबूरी में समझ सकता हूँ पर ऋतू को यहीं रहने दो, हम बूढ़े अकेले रह जायेंगे. "ठीक है बाबू जी " में जब भी समय लगा आती रहूंगी। मास्टर जी भी सेवानिवृत हो चुके थे , वो गांव के बच्चो को निशुल्क पढ़ाते थे।
एक दिन सलोनी से मास्टर जी ने कहा सलोनी बेटा अब तुम्हारे लिए कोई अच्छा लड़का देख कर शादी कर देता हूँ , "नहीं बाबू जी अभी नहीं करनी " मन मंदिर में राहुल को उसने बिठा लिया था तो जब तक राहुल के मन की थाह न मिल जाये कैसे वो शादी के बारे में सोच सकती थी।
राहुल वापिस आया लंदन से सबके लिए अच्छे अच्छे तोहफे लाया , उसका ध्यान ऋतू में था , ऐसा सलोनी ने महसूस किया। ऋतू अब सलोनी के मुकाबले ज्याद सूंदर निकल आयी थी। उसकी सुंदरता पर राहुल मोहित हो गया ऐसा महसूस किया सलोनी ने। सलोनी ने मन ही मन फैसला किया वो राहुल से इजहार नहीं करेगी। एक दिन उसने राहुल को और ऋतू को डिस्ट्रिक्ट पार्क में साथ देखा। उस दिन सलोनी की दुनिया उजड़ गयी , सारे सपने चूर चूर हो गए , जितने चाव से इंसान सपनो को सींचता है और वो एक दम चटक कर टूट ते है तो इंसान मरे इंसान से भी बदतर हो जाता है , जिन्दा लाश बन जाता है
एक दिन मास्टर जी को अचानक दिल का दौरा पड़ा वो राहुल से बोले "बेटा मै तुम्हारी शादी देख कर जाना चाहता हूँ कोई लड़की हो तो बता दो जिस से तुम पसंद करते हो"
शरमाते हिचकिचाते हुए उसने ऋतू का नाम ले दिया मास्टर जी ने ऋतू से पूछा " बेटी तुम खुश हो ना " "जैसा मेरे बाबू जी कहे मुझे क्या ऐतराज हो सकता है "
पर सलोनी बड़ी है पहले उसकी शादी होनी चाहिए। "मेरी फ़िक्र न करे बाबू जी" मुझे बहुत ख़ुशी है इनकी शादी से। अंदर ही अंदर इतना टूट रही थी बड़ी मुश्किल से संभाले हुए थी। बाबू जी ने फिर दोनों की शादी बड़े सादे तरीके से हॉस्पिटल में ही करवा दी। ऐसी शादी जिसमे कोई रिश्ते दार नहीं आया , हॉस्पिटल में हाथ में हाथ दे दिया दोनों का।
कहते है कभी कभी अंतिम इच्छा में प्राण अटके रहते है , बाबू जी को दूसरा दौरा पड़ा और तुरंत परलोक सिधार गए
शादी भी क्या शादी थी मातम भी साथ में था। सलोनी को बाबूजी के खोने का गम और राहुल को खोने का गम लग गया था वो रो ही नहीं पा रही थी। सुलोचना देवी ने गले लगाया सलोनी को उनको देख कर फफक फफक कर रो पड़ी सलोनी। आसुंओ का सैलाब आ गया था उसकी आँखों में वो सैलाब राहुल के गम को बहा ले गया बस सब्र कर रह गयी। थोड़ी ख़ुशी ऋतू के घर बसने की थी। बाबू जी जिन्होंने पिता का प्यार दिया वो कभी नहीं भूल सकती थी
बाबू जी की 13वीं के बाद सलोनी अपने सरकारी आवास पर आ गयी। उसने निश्चय किया में शादी नहीं करुँगी। एक मकान लेकर वृद्धनाथ आश्रम खोल लिया। कहते है जब एक साथी बिछड़ जाता है दूसरा भी पीछे पीछे चला जाता है ऐसा ही हुआ, बाबू जी की मृत्यु के 3 महीने बाद ही अम्मा सुलोचना देवी भी चल बसी थी। माँ का साया उठ गया एक बार फिर से आज वो अनाथ हो गयी थी। राहुल ऋतू को लेकर लंदन चला गया था
अब बस सलोनी ने शादी ना करने का फैसला किया , वृद्धो एवं अनाथ बच्चों का आश्रम खोल लिया। तमाम उम्र उनकी सेवा में झोक दी।
यही सच्ची दक्षिणा थी गुरु जी, बाबू जी के लिए आज उनके नाम पर आश्रम है
Aradhya Sharma
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