संकष्टी चतुर्थी का पर्व..जिसे सकट चौथ, वक्रतुंडी चतुर्थी, माघी चौथ और तिलकुटा चौथ के नाम से भी पुकारा जाता है। इस बार माघ महीने की सकट चौथ 24 जनवरी को है। ये पर्व पश्चिमी और दक्षिणी भारत में खासतौर से काफी प्रसिद्ध है।
गुरूवार को होने से और भी बढ़ गया है महत्व
इस बार माघ महीने की संकष्टी चतुर्थी गुरूवार को है लिहाज़ा इसका महत्व और भी ज्यादा बढ़ गया है। दरअसल, गुरूवार के दिन सकट चौथ का पड़ना और भी शुभ माना जाता है। इस दिन महिलाएं परिवार की सुख समृद्धि के साथ साथ अपने बच्चों की खुशहाली की कामना करती हैं। ताकि उन पर किसी तरह का कोई कष्ट न आए।
इस समय होगा चंद्रोदय
वही सकट चौथ यानि कि संकष्टी चतुर्थी पर चंद्रोदय का शुभ मुहूर्त रात 8.20 बजे है। इसके बाद चंद्रमा को अर्घ्य देकर ही ये व्रत पूरा होगा। चंद्रमा को अर्घ्य देकर प्रसाद ग्रहण करें और उसके बाद ही खाना खाकर व्रत खोलें।
संकष्टी चतुर्थी व्रत की कथा
कहते हैं महाराज हरिश्चंद्र के काल में एक कुम्हार रहता था। एक बार उसने बर्तन बनाकर आंवा लगाया, पर आवां पका ही नहीं। बार-बार बर्तन कच्चे रह गए। जिसके बाद कुम्हार ने एक तांत्रिक से पूछा, तो उसने कहा कि तुम्हे बलि देनी होगी तब उसने तपस्वी ऋषि जिनकी मौत हो चुकी थी, उनके बेटे की बलि दे दी। उस दिन सकट चौथ थी। जिस बच्चे की बलि दी गई उसकी मां ने उस दिन व्रत रखा था। सवेरे कुम्हार ने देखा कि वो बच्चा मरा नहींं था बल्कि खेल रहा था। डर कर कुम्हार ने राजा के सामने अपना पाप स्वीकार किया। राजा ने वृद्धा से इस चमत्कार का रहस्य पूछा, तो उसने गणेश पूजा के विषय में बताया। तब राजा ने सकट चौथ की महिमा को माना और पूरे शहर में पूजा का आदेश दिया।
इस विधि से करें संकष्टी व्रत
-सुबह सवेरे नहा धोकर उत्तर या पूर्व दिशा की ओर मुख कर गणेश जी की पूजा करें।
- गणेश जी को दुर्वा, पुष्प, रोली, फल सहित मोदक व पंचामृत चढ़ाएं।
-सकट चौथ के दिन गणेश को तिल के लड्डू का भोग लगाएं।
-संकष्टी चतुर्थी व्रत कथा सुनें और गणपति जी की आरती करें।
-शाम को चंद्रोदय के बाद चांद को अर्घ्य देकर व्रत खोले