पिंकी जैन's Album: Wall Photos

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नित्यप्रति देवदर्शन करने
जो जाते मंदिर जी में
पूजा आदि जो वहां कर रहे होते
क्यों भाव उनके प्रति
उनके बनते ऐसे ..
अरे ! ये लोग भगवान के सामने
दो बूँद जल चढ़ाकर
मानते जन्म-जरा-मृत्यु के नाश को
चन्दन चढ़ाकर कहते संताप के नाश को
अक्षत चढ़ाकर चाहते अक्षय पद
पुष्प चढ़ाकर चाहते काम के विनाश को
नैवैद्य चढ़ाकर कामना करते क्षुधा नाश की
गोले की चटक चढ़ाकर करते कामना
अज्ञान के विनाश की
आदि आदि
क्या भगवान को मानते वो इतना सस्ता
जो जरा से समर्पण से
वो कर देंगे दुःख दूर उनके ????
अरे भाई !
जैन धर्म है भाव प्रधान
भगवान की पूजा / भक्ति आदि
जो भी की जाती
उन जैसा पद प्राप्त
करने के लिए की जाती
भगवान वही होते
जिन्होंने कर लिया होता नाश
जन्म-जरा-मृत्यु का
क्रोध-मान-माया-लोभ जैसे संताप का
जीत लिया होता जिन्होंने क्षुधा को
कर लिया होता नाश अज्ञान का
उन्ही जैसा बनने के लिए
ये प्रतीकात्मक द्रव्य
उनके समक्ष भक्त चढ़ाता
पुजारी के भाव यही होते
किंतु लगता कइयों को ऐसा
मानो वो अपने रोगों को
नष्ट करने के लिए
ये द्रव्य चढ़ा रहे
जबकि नहीं होता उनका भाव ऐसा...
इसलिए मत सोचो कभी ऐसा
करो तुम भी भक्ति / पूजा
होवे अनर्घ पद प्राप्त
बने हम भी उन जैसा
इसी भावना को लेकर
करते रहो नित्यप्रति दर्शन/पूजा ...
प्रणाम !
जय जिनेन्द्र !
अनिल जैन "राजधानी"
श्रुत संवर्धक
८.२.२०१९