सुख की खातिर जीता रहा
सुख की आई श्वांस ना।
पर को अपनाने में सुध,
निज की कभी भी पाई ना।
मात पिता पत्नी बहन अरु
अपना हुआ भाई भी ना।।
पर मेरा मैं पर का हूँ
इस बुद्धि में सुख रंच ना।
आज जिनवर दर्श पाकर
राज़ ये जाना महान।
पर दृष्टि तज और निज निरख
सुख अपरिमित मुझमें महा।
उपकार प्रभुवर आपका
कहने की मुझमें शक्ति ना।
निज दर्श से मैं सुखी हुआ
और कुछ अब कुछ चाह ना।
जीवन मेरा मुझमें पाया
सुख की आई श्वांस रे।
अब ना भटकूँगा कभी
निश्चय हुआ मेरा अरे।
मेरे मनोभाव
Copied from
सचिन जैन पोस्ट
https://www.facebook.com/100006649302283/posts/2382279292003691?sfns=mo