यहां लोगों ने
अलग - अलग
नर्क चुन लिये हैं,
बस इतना ही
फर्क समझना।
उनके नर्कों की
तस्वीरें अलग हैं।
उनकी तस्वीरों के
रंग अलग हैं,
मगर गहरे में
नर्क ही नर्क है,
दुख ही दुख है।
अगर सुख चाहिए तो
सिर्फ एक उपाय है-
सिर्फ एक,
एकमात्र-और वह है
स्वयं को जानना।
जो नहीं स्वयं को जानता
वह तो दुख उठाएगा-
विवाहित हो तो
विवाह से दुख उठाएगा;
अविवाहित हो तो
अविवाहित होने से
दुख उठाएगा।
गरीब हो तो
गरीबी से
दुख उठाएगा,
अमीर हो तो
अमीरी से
दुख उठाएगा।
उसके भाग्य में
दुख है क्योंकि
उसके भीतर
सुख की
किरण नहीं है।
सुख भीतर की घटना है,
बाहर से नहीं आता;
इसका कोई
बहिर्गमन नहीं होता।
तुम सुख को
अर्जित नहीं
कर सकते हो।
सुख को कोई भी
संबंध तुम्हारे
पास क्या है,
इससे नहीं है;
तुम क्या हो,
इससे है।
और तब तुम्हें
नर्क में भी
भेज दिया जाए,
तो भी तुम सुखी रहोगे।
और ऐसे तुम
स्वर्ग में भी
जाओ तो भी
तुम दुखी रहोगे।