पिंकी जैन's Album: Wall Photos

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जैन धर्म के चारों अनुयोगों को किस प्रकार एक उदाहरण के माध्यम से मुनि श्री क्षमा सागर जी ने बताया है :-
एक माँ अपने छोटे से बच्चे को लेकर बाजार गई, बच्चा रास्ते में गिरा और ज़ोर से रोने लगा | वह माँ उसको चुप करने के लिये क्या उपाय करती है ==
*पहला उपाय* - माँ कहती है की जब दीदी गिरी थी वो तो नहीं रोई, फिर तू क्यों रोता है, चुप हो जाओ - अतार्थ आचार्य भगवंत हमसे कहते हैं कि पूर्व में जो महापुरुष हुए हैं उनको भी उनके कर्म के उदय मैं कैसी कैसी विपत्तियां आईं वह तो अपने धर्म से विचलित नहीं हुए | इसलिए आचार्य भगवंत हमे समझाते हैं तुम क्यों विचलित होते हो, उनकी तरह तुम भी धर्म में लगो और पाप से बचो | *ये प्रथमानुयोग की पद्धत्ति है*|
*दूसरा उपाय* - माँ कहती है कि सुबह दीदी से झगड़ा किया था इसलिए तुम्हे लगी ! अतार्थ आचार्य भगवंत हमें समझाते हैं कि जैसे पूर्व में परिणाम किये थे अब उसका फल भी भोगो | ये *करणानियोग की पद्धत्ति है* आचार्य भगवंत हमें बताते हैं कि अपने परिणाम सम्हालो इन्ही के सम्हालने से प्राणी अपना कल्याण कर सकता है |
*तीसरा उपाय* - माँ कहती है देख कर तो चलते नहीं हो अब गिर गये तो रोते हो - अतार्थ आचार्य भगवंत हमें समझाते है कि बाह्य आचरण को सम्हालो अतार्थ व्रत, नियम, संयम, तप आदि एवं अंतरंग में वीतराग भाव धारण करोगे तो तुम्हारा कल्याण होगा ये *चरणानियोग की पद्धत्ति है*
*चौथा उपाय* - माँ बच्चे को गोद में लेती है और कहती है वो तो घोड़ा गिरा था तू तो मेरा राजा बेटा है तुझे थोड़े ही चोट लगती है अतार्थ आचार्य भगवंत हमें समझाते हैं कि कहाँ तुम इस देह में आपा मान रहे हो वो तो पर्याय हैं | इन पर्याय में हर्ष विषाद नहीं करना चाहिए मुझे तो अपना स्व-भाव् देखना चाहिए ! *ये द्रव्यानुयोग की पद्धत्ति है*|
इस तरह हम किसी भी अनुयोग के माध्यम से अपने दुःख को दूर करने का एवं अपने जीवन को अच्छा बना सकते हैं !
*== मुनि श्री क्षमासागर जी महाराज के प्रवचनों से ==*