समय के महत्व को समझना जरूरी है : आर्यिकाश्री
खुरई
व्यक्ति के जीवन में धर्म करने, सत्संग करने, परोपकार एवं प्राणी मात्र की रक्षा के लिए समय एवं समझ दोनों की बहुत आवश्यकता होती है।
यह बात प्राचीन दिगंबर जैन मंदिर में प्रवचन देते हुए आर्यिकाश्री पूर्णमति माताजी ने कही। उन्होंने कहा कि अज्ञानी प्राणी समय के महत्व को जानता नहीं और जब तक समझ आती है तब तक बहुत देरी हो जाया करती है। समय देना तो कहां, दान देना तो कहां इसको बिना समझे करना अपना अहित करना है। दान हमेशा सुपात्र को ही देना चाहिए। समय भी हमेशा उत्कृष्ट काम करने में ही देना चाहिए। उन्होंने कहा कि वर्तमान समय में देखा गया है कि माता-पिता अपने नन्हे-मुन्ने बच्चों को प्यार दुलार में इतना बिगाड़ देते हैं कि बाद में उन्हें पछताना पड़ता है। अन्तोगत्वा उन्हें यह कहना पड़ता है कि इससे तो अच्छा था कि बेटा हुआ ही नहीं होता। हे भव्य आत्मन उठो जागो, समझो कि हमें बच्चों को कैसे संस्कार देना है।
कौन सी शिक्षण संस्था में अध्ययन कराना है, क्या खिलाना- पिलाना है। यदि हमने पूर्ण विवेक एवं सावधानी पूर्वक इसका चिंतन नहीं किया तो हमारी भारतीय संस्कृति ही विलुप्त हो जाएगी। हमें कान्वेंट संस्कृति से बचना चाहिए। उन्होंने कहा कि कभी-कभी व्यक्ति के पास सबकुछ होता है फिर भी वह समझ नहीं पाता कि मुझे क्या करना है हमारा वजूद क्या है, किसके लिए जी रहे हैं, किसके लिए मर रहे हैं। जिसने अपनी आत्मा का अवलोकन कर लिया फिर वह यहां-वहां की भटकन से मुक्त हो जाता है। जिसको आत्मानुभूति हो जाती है उसको दुनिया का कोई भी प्रलोभन डिगा नहीं सकता, जिसकी भीतर की शक्तियां जागृत हो जाती हैं वह अतीइन्द्र आनंद की अनुभूति करने लगता है। मिथ्या मान्यताएं अपने आप समाप्त हो जाती हैं।