पिंकी जैन's Album: Wall Photos

Photo 30,395 of 35,446 in Wall Photos

वीतरागता के हम पुजारी
मान बैठते स्वयं को वीतरागी
नहीं रही किसी के प्रति
दया और विनय हमारी
नहीं पसीजता मन
देखकर किसी पर कष्ट भारी
व्यवहार शुन्य होती जा रही प्रवृति हमारी ...
स्वयं के गुरु स्वयं
फिर कौन साधू और कौन संत ?
नेगटिव सोच की
बढ़ती जा रही तरफदारी
न संयोगों के प्रति कृतज्ञता
न उनके बिछुड़ने की कोई चिंता
जो होना है सो होगा
द्रव्य से सब है शुद्ध
क्यों पर्याय पर जावे दृष्टि हमारी
क्या ऐसे होते वीतरागी ?
बिना करुणा के , बिना विवेक के
रहते आये कभी संसारी
मान रहे स्वयं को
भरत चक्रवर्ती से भी ऊँचे
सोचते स्वयं को सम्यकदृष्टि
मानकर भेदविज्ञानी ?
अरे !
अहिंसा और करुणा
विनय और दया
जब तक नहीं होगा विवेक जगा
तब तक काहें के वीतरागी ?
क्षमा करें
सोच है ये मेरी ....