*कालापानी*
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भूल गए क्यों आज, शहीदों की वो कहानी
आजादी के लिए हुए शहीद, वो वीर सेनानी।
कितनी-कितनी सही यातनाएं
पहुंचाए गए वो *कालापानी*।
सफर उनका आजादी का,
किसी चार धाम से कम नहीं।
जुल्मों सितम की दास्तानें वो,
प्रताड़ना के किस्से, करोड़ों से कम नहीं।
क्रूरता की हद थी, उस सेल्यूलर जेल में,
बुलंद आवाज़ों को दबाया गया, उनके ही होश में।
ढ़हाया गया जुल्म उन पर किस तरह, हर पहर,
सोच भी ना पाओ तुम , अनजान हो इस कदर।
आजादी का, देश प्रेम का मतलब तो समझो जरा,
आपस में ना लड़ो, महत्व कुछ तो जानो जरा।
रोंगटे होंगे खड़े, कभी जाओ अंदमान निकोबार में,
जाकर के देखो उनकी यातनाओं के निशां कारागार में।
कोठियां वो चीखतीं, वो शोर स्वाभिमान का,
अमानवीय धृष्टता और सहनशीलता का।
मांगती है ये धरा, प्रण उसके सम्मान का,
मान रखोगे क्या, तुम उस त्याग , बलिदान का?
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रिया जीत राठौड़