पिंकी जैन's Album: Wall Photos

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पहले बचपन, फिर जवानी, फिर बुढ़ापे के निशान,
उम्र को भी देखिए, कपड़े बदलना आ गया .

रोशनी के वास्ते धागे को, जलते देखकर,
ली नसीहत मोम ने, उसको पिघलना आ गया.

शुक्रिया ऎ दोस्तो, बेहद तुम्हारा शुक्रिया,
सर झुकाकर जो मुझे, रस्ते पे चलना आ गया.

सरफिरी आँधी का, थोड़ा-सा सहारा क्या मिला,
धूल को इंसान के सर तक, उछलना आ गया.

बिछ गये फिर खु़द-बखु़द, रस्तों में कितने ही गुलाब,
जब हमें काँटों पे नंगे पाँव, चलना आ गया.

चाँद को छूने की कोशिश में तो, नाकामी मिली,
हाँ मगर, नादान बच्चे को उछलना आ गया.

क्या हुआ तुमको अगर, चेहरे बदलना आ गया.
हमको भी हालात के, साँचे में ढलना आ गया. "जय जीनेन्द्र"