कैसा आ गया समय
बच्चों के अनुसार चलना चाहता
हर माँ-बाप
नहीं मानने को तैयार
जिम्मेदारी अपनी
देने की बच्चों में संस्कार ....
चाहे हो लौकिक शिक्षा अथवा हो धर्म की बात
या आ जावे प्रसंग उनके विवाह का
पल्ला झाड़ कर अपना
माता - पिता चलना चाहते
बच्चों की रिक्यूआरमेन्ट के साथ ...
क्या बच्चे हो चुके होते इतने बड़े
जो निर्णय लेने में अपनी जिंदगी के
हो चुके होते सक्षम इतने ?
क्या नहीं रहा होता भरोसा उन्हें
तुम्हारे अनुभव पर ?
सोचो !
आज के माता - पिता
कुछ निर्णय / कार्य करने पड़ते
जबरदस्ती से बच्चों की भलाई के खातिर
अथवा समन्वयता बैठानी पड़ती
विचारों में उनके और अपने ...
संस्कारो पर
कुठाराघात होने से
बचा लोगे तुम उन्हें ....
संपर्क में आज जितने भी बड़े अधिकारी
सबने नहीं समझौता किया
संस्कारो से अपने
आज भी शादी की है गाँव में
कुल परम्परा से
व्यतीत कर रहे सुखमय जीवन
संग अपनी जीवनसंगिनी के ...
गलती होती हमारी (माँ-बाप) की
थोप देते हम बच्चों पे
बचना / बचाना चाहिए ऐसी नादानी से
कर्तव्य अपना मानकर
निभाना चाहिए
कुल परम्परा को अपनी
यही उपकार होगा बहुत आपका
अगली पीढ़ी पर
संस्कारित रखोंगे तुम इस तरह
अगली पीढ़ी को ...
सोचना - विचारना - खोजना अपनी कमी को
दूर करना - जब भी जीवन में प्रसंग ऐसा बने ....
प्रणाम !
अनिल जैन "राजधानी"
११.९.२०१७