जय आदि!
मैं_बूढ़ा_नहीं_हुआ_हूँ -आचार्य विद्यासागर जी महाराज
नेमावर जी से करीब 7 माह बाद बिहार हुआ। सभी सोच रहे थे कि हरदा जाएंगे। लेकिन आचार्य श्री ने को किसी ने बताया कि नहर वाले कच्चे रास्ते से सीधे भादू गांव जा सकते हैं, परन्तु हरदा छूट जाएगा। आचार्य श्री ने उस कच्चे रास्ते से ही बिहार कर दिया। मैं (एलक प्रज्ञासागर) एवं छूल्लक चंद्र सागर, एलक निर्भय सागर और 1-2 महाराज साथ थे। पगडंडी थी, तो मैं और एलक श्री निर्भयसागर जी दोनों तेज गति से आचार्य श्री के आगे आगे चल रहे थे। आचार्य श्री हम लोगों के पीछे तेजी से आ रहे थे। पर थोड़ी देर में हम लोगों के पास आकर बोले- "क्यों हमें बूढ़ा समझ रखा है क्या?" हम लोगों हँस दिए। तभी आचार्य श्री ने हम लोगों को हँसी के तौर पर छेड़ा,और बोले- "भैया! जवानों के साथ हमें भी जवान होना पड़ता है।" हम सभी उनके साथ हंसने लगे।
मैंने आचार्य श्री से बोला- "आप अभी बूढ़े थोड़ी हुए हैं, आप अभी तो जवान हैं।" आचार्य श्री बोले- *"यह बात अलग है, पर आप लोगों जैसे जवान तो नहीं हूँ।" हमने कहा- *"आचार्य श्री जवानों के साथ जो रहता है, वह कभी बूढ़ा नहीं होता। शरीर से बूढ़ा होना बुरा नहीं माना जाता, मन से बूढ़ा होना ही बूढ़ापन माना जाता है। आप तो मन से सदा जवान रहते हैं।" आचार्य श्री हंसने लगे और बोले- *"हाँ, चलो मेरे जवानों। सभी ने एक स्वर में हँस दिया, और कदमों को तेज गति दी। शाम होने के पूर्व गंतव्य स्थान पर पहुंच गए।
श्री विशुद्ध धारा परिवार
नमोस्तु शासन जयवंत हो!