श्रावक कौन ?
जो श्रवण करे
अर्थात जो श्रद्धा पूर्वक
सुनता जिनदेशना / गुरुदेशना ...
सुनना भी है एक कला
एक दो घंटे पंडाल में बैठकर
प्रवचन सुन लेना
ओर घर आते आते तक
वो ही - ढाक के तीन पात
अर्थात क्या महाराज ने कहा था ?
क्या है करना ?
हो जाता दिमाग से सब गायब
क्योंकि उतना नहीं रह पाता याद ....
मेरा अनुभव यही कहता
जब भी सुनो ऐसे प्रवचन आदि
टीवी पर अथवा पंडाल आदि में जाकर
एक पंच लाइन
जिससे हुए हो तुम प्रभावित
उसी को कर लो याद
उसी पर चिंतन करते आओ
जब तक घर तक आप
खुद ही पाओगे
कितना बड़ा मिला लाभ
चर्या में उसे लाने का करोगे तुम प्रयास
चर्चा की कोशिश करोंगे तुम उसकी
जहां भी बैठोगे/उठोगे
मंदिर जी में अथवा सखियों के साथ ...
रूचि के साथ साथ
प्रीति भी बढ़ेगी उस विषय में
चर्या में झलकेगी वो फिर तुम्हारे ...
ट्राई करो इसे एक बार अपने साथ
यदि लाभ मिले
कर देना अपने अनुभव को शेयर
अपने मित्रों के साथ ....
श्रवणपना सार्थक होगा जभी तुम्हारा
कहलाओगे सच्चे श्रावक
यानि श्रद्धावान-विवेकवान-क्रियावान ....
गुरुचरणों में इतनी विनती
हर अपने प्रवचन में
एक पंच लाइन देवें जरूर
जिससे श्रावक के दिल में घर कर जाये
ओर चिंतन करे उस पर जरूर
प्रभावक होगा इससे
प्रवचन करना
और सुनना श्रावकों का ....
नमोस्तु गुरुवर !
अनिल जैन "राजधानी"
२३.९.२०१७