चिंतनधारा : कल जब भारत और ऑस्ट्रेलियाके बीच क्रिकेट मुकाबला हुआ और भारत जीता तो ऐसा जश्न का माहोल था जैसे की दीपावली का पर्व मना रहा । अब यहाँ कहना ये है की भारत के प्लेयर्स ने मुकाबला में जितने के लिए पूर्व कितना पुरुषार्थ (मैच प्रैक्टिस)किया होगा और सभी खिलाडी ने भी पक्का लक्ष्य निर्धारित किया होगा और उसी लक्ष्य को प्राप्त करने में पूरा जोर ( उपयोग)लगाया होगा । और जब एकमात्र लक्ष्य पर ही ध्यान एकाग्र हो और कार्य ना हो ऐसा हो सकता ही नहीं । और जब वो कार्य हुआ तब खिलाडी जो आनंद की अनुभति की होगी वो कितनी अद्भुत और आह्ललादक होगी !! अब यहाँ कहना ये है की हमें भी पूर्णता का ही लक्ष्य निर्धारित कर पर्याय में पूर्णता प्रगट हो यही पुरुषार्थ करना पड़ेगा तभी हमारे अंदर भी कारण से कार्य प्रगट होगा और सादि अनंत शास्वत सुख की अनुभति कर सकेंगे । नित्य का निर्णय अनित्य में करना होगा और उसके लिए तो एक मात्र त्रिकाल एकरूप अविकारी ज्ञायक स्वभाव पर द्रष्टी रखकर अपनी पर्याय में शुद्धता प्रगट हो ऐसा पुरुषार्थ प्रबल करना होगा और ये मनुष्य पर्याय का उपयोग हिताहित का विवेक करने में ही लगाना होगा तभी कारणशुद्धपर्याय से कार्यशुद्धपर्याय प्रगट होगी ।