पिंकी जैन's Album: Wall Photos

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जैन-धर्म-दर्शन नुसार:
*** विजयदशमी/ दशहरा और दशानन रावण:
*** हम लोग रामायण की बात करते है लेकिन बात रावणायण की होनी चाहिए। रावण तो राम से भी दस कदम आगे का काम करने वाले है।
*** राम हलधर थे, रावण का जीव भविष्य में तीर्थंकर और माता सीता का जीव उनका गणधर होगा।
*** जब रावण तीर्थंकर होंगे, सीता गणधर तब रामायण अतीत हो जायेगा। इस प्रकार की घटनाएं भुतकाल में अनंत हो गयी है और भविष्य काल में भी अंनत होंगी।
*** जितना महा-संग्राम राम-रावण दोनों ने मिलकर किया था, उससे कही अधिक शांति धरती पर करके रावण मोक्ष चले जायेंगे।
#रावण:
*** रावण राक्षस नहीं थे!
=> रावण के वंश का नाम राक्षस-वंश था वास्तव में वे राक्षस नहीं थे।
*** #दशानन रावण:
=> रावण के #दस #मुख #नहीं थे। बचपन में जब रावण खेलते तो इनके गले में पहनी हुई नो (९, 9) रत्नों की माला में इनके नो मुख दिखाई देने से रावण का नाम दशनन हो गया।
*** रावण #संबोधन:
=> राजा बाली का संकल्प था की, मैं किसी की पराधीनता स्वीकार नहीं करूँगा। जब रावण ने बाली को बोला की, मुझे समर्पण कर दो! तो बाली ने रावण की पराधीनता को स्वीकार नहीं किया।
=> समय व्यतीत होने पर बाली ने मुनि दीक्षा धारण करली। एक बार रावण कही जा रहा था तो उसका विमान बिच में ही, कैलाश पर्वत पर जहाँ बाली मुनिराज तपस्या कर रहे थे उस स्थान के ऊपर रुक गया।
=> रावण ने सोचा , बाली मुनि तपस्या कर रहा है लेकिन इनका बैर अभी तक नहीं गया जो मेरा विमान रोक दिया जबकि विमान मुनिराज के प्रभाव से अपने आप रुका था।
=> रावण ने क्रोध वश, बाली मुनिसे बदला लेने के भाव से कैलाश पर्वत को उठा लिया और सोचा की इसे समुद्र में फेक देता हूँ।
=> बाली मुनिराज ने देखा की किसीने ये पर्वत जिसपर मैं तपस्या कर रहा हूँ उठा लिया है तो उस पर्वत पर जो जीव, जानवर, पशु थे उनकी रक्षा के लिए अपने पैर के अंगूठे को दबादिया जिससे पर्वत नीचे हो गया, रावण संकट में आ गया और वह जोर जोर से रोने लगा फिर रावण की पत्नी ने प्रार्थना की तो महाराज जी ने छोड दिया। ... #रोने के #कारण दशानन, रावण नाम से जाना जाने लगा।
*** #शाकाहारी रावण:
रावण जैन-धर्म के अनुयायी थे, शाकाहारी थे, मांसाहार का सेवन तो सोच भी नहीं सकते थे।
*** #जिनेंद्र भक्त रावण:
रावण श्री शांतिनाथ भगवान जी के बहुत बडे भक्त थे, एक बार शांति-भक्ति करते वक्त वीणा बजाते हुए वीणा के तार टूट गए तो रावण अपने हाथ की नाडी/नस निकाल ली और उसे वीणा में जोडकर और भक्ति करने लगे।
*** रावण सब कलाओं में पारंगत और ज्ञानी थे।
*** रावण ने बहुत तपस्या की थी परन्तु पूर्व कर्म का ऐसा उदय आया की उनका राम से युद्ध हुआ और उन्हें नरक जाना पडा। वतर्मान में रावण नरक में है परन्तु रावण भविष्य में तीर्थंकर बनेंगे।
*** भगवान राम किसी न किसी रूप में रावण की विद्वता के कायल थे। राम ने ही लक्षमण को रावण से नीति की शिक्षा लेने की लिए भेजा था, तो फिर किस कारण रावण राक्षसत्व ढो रहा है? ... क्यूँ हमारे इतिहासकारों ने रावण के गुणों को आम आदमी पर जाहिर नहीं होने दिया ?
*** जैन-धर्म नुसार किसी भी जीव के पुतले को भी जलता हुआ देखना, अनुमोदना करना, खुश होना ये पाप बांध का कारण है।
*** रावण के जीवन में जो बुराई थी उनसे हमें बचना चाहिए जिससे हमें नरक न जाना पडे।
*** विजयदशमी पर अच्छाई पर बुराई की विजय मनाये, रावण के पुतले को नहीं रावण की बुराई को मिटाए!
*** विजयादशमी से इन दस पर विजय प्राप्त करने का पुरुषार्थ करें:
01. दस प्रकार के बहिरंग परिग्रह,
02. पाप के पाँच कारण (मिथ्यात्व, अविरति, प्रमाद, कषाय, योग) + पाँच पाप (हिंसा, झूठ, चोरी, कुशील और परिग्रह)। और ...
03. पाँच पाप + चार कषाय + मिथ्यात्व।
*** विजयादशमी से दश-धर्म (उत्तम क्षमा, ..., उत्तम ब्रम्हचर्य) का अंगीकार कर स्वयं पर विजय प्राप्त करने का पुरुषार्थ प्रारंभ करें।
*** स्वयं को जितना ही विजय है।
--- Ref: जैन रामायण तथा जैन रामायण पर आ. विद्यासागर जी महाराज जी के प्रवचन।
--- जय श्री राम!
--- जय जिनेंद्र, उत्तम क्षमा!
--- जय भारत!