पिंकी जैन's Album: Wall Photos

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यही कोई 11बज रहा था । मैं रसोईघर में थी ,एक आवाज सुनायी दिया ।मैंने पति से पूछा कौन है ?---बोले झाड़ू बेचने वाले हैं।मुझे झाड़ू लेना नही था फिर भी दरवाजे पर चली गयी ।झाड़ू वाले को देखने ।सामने देखी दो बुजुर्ग सिर पर झाड़ू की गठरी लादे हुए है ।मुझे देखकर उनके चेहरे में चमक आ गयी ,खुशी झलकने लगी ।उन्हें लगा कोई खरीदार मिल गया ।--मुझे खरीदना नही था फिर भी आदतवश मैंने भाव पूछ लिया ।झाड़ू छिंन का था ,बढ़िया गूथा हुआ और लम्बा ।आमतौर पर हमारे यहाँ मिलने वाला छिंन झाड़ू इतना गूथा हुआ नहीं होता ,न ही लम्बा होता है ।बुजुर्ग ने कीमत बताया- 60रुपये जोड़ी ।
एकदम बढ़िया बहरी हे ।इहा के नोहै ।
मैंने ने कहा -तोर बहरी सुन्दर हे ।फेर हमन एमा नई बाहरन ।तबतक उसकी पत्नी आ गयी । उसने तपाक से कहा -ले कम कर देबो 50 रुपया जोड़ी म् ले ले ।अड़बड़ दूरहिया ले लाने हन ।
उन लोगों की उम्र और मेहनत देखकर मुझे थोड़ी दया आ गयी ।यद्यपि घर में छीन झाड़ू का उपयोग नही होता तथापि मैने एक जोड़ी खरीद लेने का सोचा ।वैसे भी पचास रुपये का ही तो है ।
मैने कहा-ले एक जोड़ी दे दे ।मेरा इतना कहना था कि दोनों के चेहरे की चमक बहुत बढ़ गयी ।संतोष दिखने लगा ,चलो कुछ तो बिक्री हुई ।
बुजुर्ग सिर से गठरी उतारकर उसमें स एक जोड़ी छाठ कर निकाला और दिया ।
मैंने बहरी को अलट-पलट कर देखा ,और जैसा कि हमारा स्वभाव है कि एकाएक हम समान की गुणवत्ता को स्वीकार नहीं करते पसन्द का अवसर हो तो दो-चार को जरूर देखते है ।मैंने कहा-ये दे बने नई हे, दूसर दे ।बुजुर्ग तुरन्त बोले ये ले छाट ले बेटी सबे एके बरोबर हे ,मैं एक दो बहरी को देखी ,सब एक जैसे ही लगे ,मन में सोची #यही ल कइथे #आँखी नाचथे# एक बहरी अलग की और घर के भीतर चली गई ।पैसे लेकर लौटी ,पैसे देते हुए ,जैसा कि मेरी आदत है मैंने बातचीत शुरू कर दिया ।मैंने पूछा-कहाँ रहिथो ?
बुजुर्ग-महासमुंद ।
मुझे आश्चर्य हुआ ।महासमुंद से यहाँ !!!मेरे चेहरे के भाव से उन्हें समझ आ गया ।मेरे पूछने से पहले बताने लगे ।
ये बहरी इहा के नोहय ।उड़ीसा ले लाने हन ।रइपुर टेशन में उतरने उहा बेचेन फेर ए कोती आगेंन ।
महासमुंद में नई बेचावय का ।
बुजुर्ग -उहो बेचथन । इहा टेशन में रुके हन ।थोड़कन बेच लेबो ,तहा ले जाबो।
के झन नोनी बाबू हे ।
बुजुर्ग -एक झन बेटी हे ।दू झन नाती हे ।बेटी दामाद घलो बेचथे ।
बताते-बताते बुजुर्गों के चेहरे में थोड़ा दर्द झलकने लगा ,आँखें डबडबा आयी,फिर कहने लगे ।दू झन बेटा रहिस ।एक ठन कोरा म् ही नही रहिस ,एक ठन बड़े हो के पानी मे डूब गे, एक ठन बेटी अउ रहीस ,थोड़कन बड़का हो के बीमारी में खत्म हो गे ।
उनकी बात सुनकर मेरी भी आँख भर आयी ।फिर मैंने थोड़ा सम्हलते हुए पूछा -बेटी दामाद कहाँ रहिथें ?
थोड़ी गहरी सांस लिए ।बताते हुए चेहरे में संतोष झलकने लगा ।-बेटी दामाद सँगे में रहिथें । वुहुमन बहरी बेचथे ।अभी बेचेबर नागपुर गे हे।
वातावरण को हल्का करते हुए मैने पूछा -तुम्हर मन के उमर कतका होंगे हे ।वैसे तो देखने मे 65-70 के लग रहे थे ।
बुजुर्ग - 80 बरस ।
ये 80 बरस के हे ,तो तै के बरस के हस दाई?
महू वइसने हव 70-80 बरीस के ।
मैंने कहा -80 बरस के तो नई दिखव।
दोनों हँसने लगे ।फिर बोली ये ह 70 बरीस के हे अउ मैं 65-67 बरीस के हवव।
अइसने घूम घूम के दोनों झीन बेचथन ।
केठन बेच डरे ।
40 ठन रखे रहेन । 20 ठक मैं ,20 ठक ये ।20 ठक बेचा गे हे ।16 मोर मेर अउ 4ठक ओखर मेर बाचे हे ।
तुंहर मन के नाम का हे?
बुजुर्ग -वइसे मोर नाव भुवन प्रसाद हे फेर सबे झिन भुवन चे कइथे ।
मोर कुमारी नाव हे।
बात करते करते दोनों का गठ्ठर बन्ध गया था ।
दोनों सन्तोष की गहरी सांस लिए और बहरी का गठ्ठर सिर पर रख आगे निकल चले ।
इस उम्र में इतनी मेहनत ,सिर पर बोझ रखकर दूर-दूर तक पैदल चलना । कितनी देर में पहुँच पाएंगे ,ये स्टेशन तक ।मेरे घर से स्टेशन लगभग 10 किलोमीटर दूर है ।मैं अभी 55 की भी नही हुई हूं और मेरे लिए 1 किलोमीटर चलना ,वह भी बिना किसी भार के , बहुत दुश्वार लगता है । ये प्रतिदिन कितना चलते है ?इतनी कड़ी मेहनत पर चेहरे पर कोई शिकन नही कोई शिकायत नही ।परम संतोष । दोनों में प्रगाढ़ प्रेम ।
उन्हें जाते हुए मैं देर तक देखती रही जब तक आँख से ओझल न हो गए ।
आज मेरी करवा-चौथ मन गयी ।
समझ आ गया स्वस्थ रहना है तो शारीरिक श्रम जरूरी है ।धन से सुख नही मिलता।
# सुख विश्वास और मेहनत में है #।