हम अकसर किसी से भी जल्दी घुल-मिल जाते हैं जिस कारण हम अपने मन की सारी बात बाँट देते हैं। और फिर हमारा मज़ाक बनकर रह जाता है।
ज़रा सोचिए:-
मन की बात बाहर से जुड़े शख्स से कहने से क्या होगा, वो उसे बाहर ही फैलाएगा।
जो आपसे मन से जुड़ा है, वही आपके मन की बात को समझकर उसे अंदर फैलाकर आपको हमेशा मन से सहारा देगा।
"जुड़िए उनसे जो आपसे अंदर से जुड़े हैं
और
छोड़िए उन्हें जो आपसे बाहर से जुड़े होने का दिखावा करते हैं।"
क्योंकि रिश्ता रूह से होता है, शरीर से नहीं।