पिंकी जैन's Album: Wall Photos

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उत्तराखंड में यहां मौजूद है ‘परीलोक’, रिसर्च के दौरान बड़े वैज्ञानिक रह गए सन्न**....** मेरा भारत महान !! .जय माता दी ! जय जिनेन्द्र जी !!
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उत्तराखंड के एक ऐसे पर्वत के दर्शन आज हम आपको कराएंगे, जो लाखों लोगों के आस्था का केंद्र बना है। ये पर्वत टिहरी जिले में है। खैट पर्वत पर अप्सराओं का वास है। इन्हें यहां आज भी देखा जा सकता है। गढ़वाल इलाके में वन देवियों को आछरी-मांतरी के नाम से जाना जाता है। बताया जाता है कि यहां आंछरियों को जो लोग एक बार मन भा जाते हैं वो उन्हें मूर्छित करके अपने पास रख लेती हैं और अपने लोक में ले जाती हैं। ये बिल्कुल सच है। देवलोक से भू-लोक तक रमण करने वाली ये परियां हिमालय क्षेत्र में वनदेवियों के रूप में जानी जाती हैं। अमेरिका की मैसाच्युसेट्स यूनिवर्सिटी के वैज्ञानिकों ने भी एक शोध में पाया है कि इन जगह पर अजीब सी शक्तियां निवास करती हैं। आपको बता दें कि गढ़वाल कुमाऊं के लोग तो अच्छे से जानते होंगे कि उत्तराखंड के टिहरी गढ़वाल के फेगुलीपट्टी के थात गॉव की सीमा पर अवस्थित 10000 फिट उंचाई की पर्वत श्रृंखला खैट पर्वत में परियों का वास है। खैट पर्वत पर्यटन और तीर्थाटन की दृष्टि से मनोरम है।
खैट पर्वत समुद्रतल से 10 हजार फीट की ऊंचाई पर है। खैट पर्वत के चरण स्पर्श करती भिलंगना नदी का दृश्य देखते ही बनता है। खैट गुंबद आकार की एक मनमोहक चोटी है। इसलिए विशाल मैदान में स्थित ये अकेला पर्वत अद्भुत दिखाई देता है। कहा जाता है कि खैट पर्वत की नौ श्रृंखलाओं में नौ परियों का वास है। ये नौ देवियां नौ बहनें हैं। जो आज भी यहां अदृश्य शक्तियों के रूप में यहां निवास करती हैं। इसका अनुमान इसी से लगाया जा सकता है कि अनाज कूटने के लिए जमीन पर बनाई जाने वाले ओखल्यारी यहां दीवारों पर बनी है। बड़े बड़े वैज्ञानिक भी इस जगह पर आकर हैरान हैं। हैरत की बात यह है कि इस वीराने में स्वत ही अखरोट और लहसुन की खेती भी होती है। अखरोट के बागान लुकी पीड़ी पर्वत पर मां बराडी का मंदिर गर्भ जोन गुफा है। भूलभुलैय्या गुफा जहां नाग आकृतियां उकेरी हुई हैं। नैर-थुनैर नामक दो वृक्ष जिसके पत्तों से महकती है अजीबोगरीब खुशबू।
कहीं ये वही ऐडि-आंछरी/ योगिनियाँ/ रणपिचासनियां तो नहीं जो जिन्होंने अंधकासुर दैन्त्य बिनाश में महादेव कैलाशपति का साथ दिया था और कुछ कैलाश जाने की जगह यहीं छूट गई थी। इस चोटी में मखमली घास से ढका एक खूबसूरत मैदान है। जहां से दृष्टि उठाते ही सामने क्षितिज में एक छोर तक फैली हिमचोटियों के भव्य दर्शन होते हैं। आसपास दूर-दर तक कोई दूसरा पर्वत शिखर न होने से ये इकलौता लघुशिखर अत्यंत भव्य मैदान पर पहुंचकर ऐसा आभास होता है मानों हम वसुंधरा की छत पर पहुंच गए हैं। दिल इस पर्वत शिखर से लौटने की अनुमति आसानी से नहीं देता है। कहते है कि थात गॉव से 5किमी दूरी पर स्थित खैट खाल मंदिर है रहस्यमयी शक्तियों का केंद्र है। प्राचीनकाल से ही इस जगह पर इन बुग्यालों में चिल्लाना, चटक कपड़े पहनना, बेवजह वाद यंत्र बजाना, प्रकृति विपरीत काम करना पूरी तरीके से प्रतिबंधित है। इसलिए वहीं जाएं जो तीन दिन तक नियम संयम और बिना शराब कबाब शबाब के रह सके।
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अपने महान देश का सम्मान करना ही देश प्रेम हैं ! मेरा भारत महान !! जय हिन्द !!