अगर तुम ठीक से नाचोगे,
तो तुम पाओगे कि तुम शरीर नहीं रहे।
नाच की आखिरी गरिमा में, आखिरी ऊंचाई पर,
तुम शरीर के बाहर हो जाते हो।
शरीर थिरकता रहता, थिरकता रहता;
लेकिन तुम बाहर होते हो, तुम भीतर नहीं होते।
इसलिए तो मैं ध्यान की प्रक्रियाओं में
नृत्य को अनिवार्य रूप से जोड़ दिया हूं;
क्योंकि नृत्य से अदभुत ध्यान के
लिए और कोई प्रक्रिया नहीं है।
अगर तुम भरपूर नाच लो,
अगर तुम समग्ररूप से नाच लो,
तो उस नाच में तुम्हारी
आत्मा शरीर के बाहर हो जाएगी।
शरीर थिरकता रहेगा,
लेकिन तुम अनुभव करोगे कि
तुम शरीर के बाहर हो।
और तब तुम्हारा असली नृत्य शुरू होगा :
यहां शरीर नीचे नाचता रहेगा,
तुम वहां ऊपर नाचोगे।
शरीर पृथ्वी पर, तुम आकाश पर!
शरीर पार्थिव में, तुम अपार्थिव में!
शरीर जड़ नृत्य करेगा,
तुम चैतन्य का नृत्य करोगे।
तुम नटराज हो जाओगे।