अक्सर लोगों को कहते सुनता हूँ "हमारी बहू बेटी जैसी है"..... क्या आपने कभी किसी को कहते सुना है कि "मम्मी बिल्कुल पापा जैसी है या पापा मम्मी जैसे हैं ".....नहीं, क्योंकि पापा पापा होते हैं और मम्मी मम्मी. उन्हे किसी के जैसा होने की जरूरत नहीं है....... जब हम किसी के जैसा होना चाहते हैं तो अपने अस्तित्व पर ही प्रहार कर देते हैं....... बहू बेटी जैसी होनी चाहिए, यह वाक्य बहू की पहचान पर प्रश्न उठाता है....... क्या बहू होने मे अपनी कोई खासियत नहीं है जो बेटी जैसा होने का प्रमाण चाहिए?........बहू होना क्या इतना बुरा है? कोई यह भी क्यूँ कहता है "हम बहू को बेटी जैसा प्यार देंगे"......, इसका मतलब बहू जैसा प्यार या तो होता ही नहीं या फिर देने लायक नहीं होता........ बहू बहू होती है और बेटी बेटी.......इनकी तुलना करना बेबुनियाद है. .....यह तुलना करके आप संतरे से यह कह रहे हैं कि तू सेब की तरह गुणकारी नहीं हैं और सेब से ये कह रहे हैं कि तू रसदार नहीं है........
बेटी घर मे जन्म लेती है, उसके बचपन की किलकारियों से गूँजता है घर.........बहू पराए घर से आती है,..... अपना बचपन कहीं पीछे छोड़ आती है......., वो बेटी जैसी कैसे हो सकती है? ......और क्यों हो वो बेटी जैसी?........ जब वो कहते कि मैं बेटी जैसी हूँ मैंने कहा मैं बचपन से तो किसी और की बेटी थी अब अचानक स्टेटस कैसे बदलूँ?.......
मुझे नहीं होना किसी के जैसा, मैं स्वयं मे ही सम्पूर्ण हूँ. अगर हो सके तो मेरे बुरे वक्त मे साथ खड़े रहना........मेरी स्वाभाविक कमजोरियों पर हँसना मत......मेरे मातृत्व पर सवाल मत खड़े करना..... मुझे बेटी जैसा प्यार मत देना......., पर मुझे बहू का सम्मान देना....... मुझे बहू का प्यार देना.....
मैं बहू हूँ और बहू ही रहूँगी......बेटी तो मैं किसी की सालों पहले जन्मी थी,...... अब यह फिर से तो ये अगले जन्म मे ही पाएगा.....हरि ऊँ